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________________ 5 खण्ड-३, गाथा-५ कः शोभेत वदन्नेवं यदि न स्यादहीकता। अज्ञ()ता वा यतः सर्वं क्षणिकेष्वपि तत्समम् ।। [हेतुबिन्दुटीका – पृ०१३१] विशेषहेतवस्तेषां प्रत्ययाः न कदाचन। नित्यानामिव युज्यन्ते क्षणानामविवेकता।। [हेतुबिन्दुटीका – पृ.१३१] क्रमेण युगपच्चैव यतस्तेऽर्थक्रियाकृतः। न भवन्ति ततस्तेषां व्यर्थः क्षणिकताश्रमः ।। इति।। तदयं सत्ताहेतुरसाधारणानैकान्तिका क्षणिकाऽक्षणिकयोरभावात्, प्रकारान्तराभावाच्च न ताभ्यां व्यतिरिच्यत इति संशयहेतुस्तयोरिति । असदेतत्- यतो नैवमुपकारः क्षणिकानामभ्युपगम्यते। तथाहि- उपकारः समग्रकारणाधीनविशेषान्तरविशिष्टक्षणान्तरजननम् तच्च कथमभिन्नकालेषु परस्परं क्षणिकेषु भावेषु भवेत् कार्य-कारणयोः 10 परस्परकालपरिहारेणावस्था(नां?)नात्। ततः सामग्र्या एव जनकत्वात् एकस्य जनकत्वाऽविरोधादव्यवधानदेशा: समग्र (?) एव प्रत्येकमितरेतरसहकारिणः स्वं स्वं क्षणान्तरं विशिष्टमारभन्ते तदपि चोत्तरोत्तरं तथैव क्षणिकों में भी वह सब समान है।। नित्य भावों की तरह क्षणिकों में विशेष (आधायक) हेतु एवं उन के निमित्त किसी भी तरह घट नहीं सकता, यह अविवेकता है।। क्षणिक भाव क्रम से या एक साथ अर्थक्रियाकारी नहीं बन सकते, अत उन का (क्षणिकवादियों का) क्षणिकता (सिद्धि) के लिये परिश्रम व्यर्थ 15 है।। - शंकाकार कहता है कि इस तरह क्षणिकतासाधक सत्त्व हेतु न तो क्षणिक भावों के साथ संगति रखता है, न अक्षणिक भावों से, अतः वह हेतु असाधारण अनैकान्तिक दोषग्रस्त है, अन्य तो कोई प्रकार न होने से क्षणिक-अक्षणिक को छोड कर अन्य स्वरूप तो कोई स्वतन्त्र भाव है नहीं - अतः भाव क्षणिक है या अक्षणिक इस संशय को खडा करने वाला ही सत्त्व हेतु ठहरता है। [सत्ता हेतु में अनैकान्तिक दोष का निरसन ] 20 शंका का उत्तर :- सत्ता हेतु में अनैकान्तिक दोष-प्रदर्शन गलत है। कारण, हम क्षणिकों में एकदूसरे पर कोई उपकार का नाम निर्देश भी नहीं करते हैं। उपकार यानी क्या यह जान लो - समस्त कारणों पर निर्भर ऐसे विशिष्ट कार्य क्षण का जनन जिस में कुछ अन्य विशेष यानी नाविन्यादि का आश्लेष हो। ऐसा नाविन्यादि विशेष का सृजन समकालीन क्षणिक भाव एक-दूसरे में कैसे कर सकता है (क्योंकि वे तो अपने पूर्णस्वरूप से प्रथमतः एव आविर्भूत है।) ? कार्य-कारण तो भिन्नकालीन ही होते हैं एकदूसरे 25 के काल का परिहार कर के रहने वाले हैं अतः एक-दूसरे में समानकाल में कार्योत्पत्ति नहीं कर सकते। (मतलब, कारणसमूह समकाल में एक-दूसरे के ऊपर किसी भी उपकार का सृजन नहीं कर सकते ।) इस प्रकार हमारे क्षणिकवाद में सामग्री ही कार्य जनक होने से उस के घटकी भूत एक एक अवयव में कारणता मान लेने में विरोध को अवकाश ही नहीं रहता। सामग्री भी वही कही जाती है किसी एक देश में अवयवों का अव्यवधानरूप से जो मिलन होता है यानी प्रत्येक अवयव मिल कर समग्र बनता है। वे सब परस्पर 30 एक-दूसरे से मिल कर रहे हुए एक-दूसरे के सहकारी कहे जाते हैं। वे सब अपने अपने सन्तान में विशिष्ट क्षणान्तर का जनन करते हैं। वे भी उसी प्रकार उत्तरोत्तर विशिष्ट क्षणान्तर को, वे भी उसी प्रकार उत्तरोत्तर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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