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________________ ३७१ 15 खण्ड-३, गाथा-५० भवान्तरस्थूलशरीरसम्बन्धित्वाऽयोगात् पुद्गलोपष्टम्भव्यतिरेकेणोर्ध्वगतिस्वभावस्यापरदिग्गमनासम्भवात् स्थूलशरीरेणातिसूक्ष्मस्य रज्ज्वादिनेवाकाशस्य सम्बन्धाऽयोगात् संसारिशून्यमन्यथा जगत् स्यादिति संसार्यात्मनः सूक्ष्मशरीरसम्बन्धित्वं सर्वदाभ्युपगन्तव्यम्। अथ शरीरात्मनोस्तादात्म्ये शरीरावयवच्छेदे आत्मावयवस्यापि छेदप्रसक्तिः अच्छेदे तयोर्भेदप्रसङ्गः । न, कथंचित्तच्छेदस्याभ्युपगमात् अन्यथा शरीरात् पृथग्भूतावयवस्य कम्पोपलब्धिर्न भवेत्। न च छिन्ना- 5 वयवानुप्रविष्टस्य पृथगात्मत्वप्रसक्तिः, तत्रैव पश्चादनुप्रवेशात् छिन्ने हस्तादौ कम्पादितल्लिङ्गाऽदर्शनादियं कल्पना। न चान्यत्र गमनात् तस्य तल्लिंगानुपलब्धिः, एकत्वादात्मनः शेषस्यापि तेन सह गमनप्रसक्तेः। न चैकत्र सन्ततावनेक आत्मा अनेकज्ञानावसेयानामेकत्रानुभवाधारेऽप्रतिभासप्रसक्तेः, शरीरान्तरव्यवस्थितात्मान्तरवत् । न च पृथग्भूतहस्ताद्यवयवस्थितोऽसौ तत्रैव विनष्ट इति कल्पनापि युक्तिसंगता, शेषस्याप्येकत्वेन तद्वद् विनाशप्रसक्तेः ततोऽन्यत्राऽगतेः तत्राऽसत्त्वात् अविनष्टत्वाच्च तदनुप्रवेशोवसीयते 10 ही घट नहीं सकेगी। स्वतन्त्र आत्मा की गति ऊर्ध्व होती है, पुद्गल प्रभाव के विना आत्मा की अन्य अन्य दिशाओं में गति का सम्भव ही नहीं होगा। कारण :- रज्जुआदि स्थूल द्रव्य का सूक्ष्म आकाश के साथ बन्ध नहीं होता वैसे ही यदि स्थल शरीर के साथ सक्ष्मशरीर का बन्ध नहीं होने का मानेंगे तो एक स्थूल शरीर का अन्त होने पर सब मुक्त हो जाने से सारा जगत् संसारिजीवशून्य हो जायेगा। अतः संसारी आत्मा को हर हमेश सूक्ष्म शरीर का बन्ध मानना पडेगा। [ आत्मा के अवयवों के छेद की आपत्ति का समाधान ] शंका :- देह और आत्मा का अभेद मानेंगे तो देह के हस्तादि अवयवों का छेद होने पर आत्मा के भी भेद = विभाजन की आपत्ति होगी, यदि छेद नहीं होगा तो शरीर से उस का भेद मानना पडेगा। ___उत्तर :- नहीं। हमें कथंचिद् आत्मा का च्छेद स्वीकार्य है। अन्यथा, छीपकली के शरीर से कट 20 जाने पर पुच्छावयव में जो कम्पन दिखते हैं वे नहीं दिखेंगे। ऐसा मत समझना कि – “छिन्न पुच्छ में अनुप्रविष्ट अवयव में पृथग् आत्मा को मानना पडेगा' – जब पुच्छावयव का कम्पन खतम हो जाता है तब उस अवयव में प्रविष्ट आत्मप्रदेश शेष भागवाले शरीर में प्रवेश कर लेते हैं - ऐसी कल्पना निराधार नहीं है, छिन्न हस्तादि अवयव में पहले जो कम्पन स्वरूप लिंग दिखता था वह अब कुछ काल के बाद नहीं दिखता है। उस छिन्न अवयव में जो कम्पन लिंग नहीं दिखता उस 25 का मतलब ऐसा नहीं समझना कि 'तद्गत आत्मा अन्यत्र चला गया।' – यदि ऐसा होता तो शेष भाग से भी आत्मा का निर्गमन अन्यत्र गमन मानना पडेगा क्योंकि छिन्न हस्तादि और शरीर में आत्मा तो एक ही था। एक देह सन्तान में अनेक आत्मा की कल्पना शक्य नहीं है, क्योंकि अनुभव के आधारभूत एक शरीर व्यक्ति में अनेक ज्ञानों से बोध्य विषयों का जो प्रतिभास होता है उन का लोप होगा, जैसे कि अन्य शरीर में प्रविष्ट अन्य आत्मा को उक्त प्रतिभास नहीं होते। 'छिन्न 30 हस्तादिअवयव में प्रविष्ट आत्मा, कम्पन खतम हो जाने पर वहाँ ही नष्ट हो गया' - ऐसी कल्पना भी संगत नहीं है क्योंकि शेष जो छिन्न शरीरभाग है उस में भी छिन्न हस्तादि की तरह आत्मनाश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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