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________________ ३४७ 15 खण्ड-३, गाथा-३६ कथं नाऽवाच्यः ?।१६। ___ 'एते च त्रयो भंगा गुण-प्रधानभावेन सकलधर्मात्मकैकवस्तुप्रतिपादका: स्वयं तथाभूताः सन्तो निरवयवप्रतिपत्तिद्वारेण सकलादेशाः, वक्ष्यमाणास्तु चत्वारः सावयवप्रतिपत्तिद्वारेणाशेषधर्माक्रान्तं वस्तु प्रतिपादयन्तोऽपि विकलादेशाः' - इति केचित् प्रतिपन्नाः। वाक्यं च सर्वमेकानेकात्मकं सत् स्वाभिधेयमपि तथाभूतमवबोधयति । यतो न तावन्निरवयवेन वाक्येन वस्तुस्वरूपाभिधानं सम्भवति अनन्तधर्माक्रान्तैकात्म- 5 कत्वाद् वस्तुनः। निरवयववाक्यस्य त्वेकस्वभाववस्तुविषयत्वात् तथाभूतस्य च वस्तुनोऽसम्भवात् न निरवयवस्य तस्य वाक्यमभिधायकम्। नापि सावयवं वाक्यं वस्त्वभिधायकं सम्भवति वस्तुन एकात्मकत्वात् । न च वस्तुनो व्यतिरिक्तास्तदंशाः, तद्व्यतिरेकेण तेषामप्रतीते: - एकस्वरूपव्याप्तानेकांशप्रतिभासात् । न च तद् एकात्मकमेव, अनेकांशानुरक्तस्यैव एकात्मन: प्रतिभासात्। अतो वस्तुन एकानेकस्वभावत्वात् तथाभूता एव नैकान्ततः सावयवा उभयैकान्तरूपा वा। 10 तत्र विवक्षाकृतप्रधानभाव-सदायेकधर्मात्मकस्यापेक्षितापराशेषधर्मक्रोडीकृतस्य वाक्यार्थस्य स्यात्कारतो उस रूप से भी घट का अभाव प्रसक्त होने से आखिर घट अवाच्यत्व क्यों नहीं होगा ? अनेकान्तवाद में तो कथंचिद् बाह्यान्तर उभय स्वरूप घट की एक साथ विवक्षा करने पर कथंचिद् अवक्तव्य हो सकता है।१६। [ सप्त भंगों में सकलादेश-विकलादेश विभाग ] “ये आद्य तीन भंग गौण या प्रधानभाव से सकलधर्ममय एक वस्तु के प्रदर्शक हैं। निरवयव (अखंड) बोध कराने के कारण स्वयं इस प्रकार के होते हुए इन तीन भंगों को सकलादेश कहेंगे। शेष अग्रिम ग्रन्थ में कहे जानेवाले चार भंग सावयव (सखंड) बोध द्वारा समस्तधर्ममय वस्तु का प्रदर्शक होने पर भी विकलादेश हैं।” – कुछ विद्वानों का ऐसा अभिप्राय है। जैनदर्शनानुसार सभी वाक्य एकानेकात्मक होते हैं और अपने वाक्यार्थ को भी एकानेकतया ही प्रदर्शित करते हैं। वाक्य भले सावयव हो, बोध 20 सावयव (सखंड), निरवयव (अखंड) दोनों प्रकार से करा सकते हैं। निरवयव वाक्य नहीं होता, निरवयव वाक्य से वस्तु के पूर्ण स्वरूप का प्रदर्शन शक्य नहीं, क्योंकि वस्तु तो अनन्तधर्मगुम्फित एकात्मक होती वाक्य तो एकस्वभाव वस्त को ही स्पर्श कर सकता है, किन्त वस्त कभी एकस्वभाव नहीं होती, अतः (कल्पित) निरवयव (सिर्फ एकात्मक) वस्तु का प्रदर्शन निरवयव वाक्य नहीं कर सकता। 'तो क्या सावयव वाक्य वस्तु प्रतिपादक हो सकेगा ?' नहीं, क्योंकि वस्तु एकात्मक (कथंचिद्) होती 25 है। वस्तु के तथाकथित अवयव वस्तु से भिन्न नहीं होते, क्योंकि वस्तु के साथ भेद से उन की प्रतीति नहीं होती। वस्तु तो एक स्वरूप से रञ्जित अनेकांशमय ही भासित होती है। एकान्ततः वस्तु एकात्मक भी नहीं होती, क्योंकि एकात्मकता भी अनेक अवयवों से व्याप्त हो कर भासित होती है। निष्कर्ष, वस्तु एकानेकस्वभाववाली होने से, तथाप्रकार वस्तु के प्रदर्शक शब्द भी एकानेकस्वभाव ही हो सकते हैं। न तो एकान्ततः सावयव, न तो एकान्ततः उभयरूप यानी सावयव-निरवयवरूप हो सकते हैं। 30 [ सकलादेश-विकलादेश भंगो का वाक्यार्थ ] तीन भंग सकलादेश है उन में पहला है ‘स्यात् घटः अस्ति' (कथंचिद् घट सत् है।) स्यात् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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