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________________ खण्ड-३, गाथा-२७ २९५ 10 तस्मात् पूर्वपर्यायविनाश उत्तरपर्यायोत्पादात्मकः, तद्देशकालत्वात् उत्पादात्मवत्, अभावरूपत्वाद्वा प्रदेशस्वरूपघटाद्यभाववत्, प्रागभावाभावरूपत्वाद्वा घटस्वात्मवत्। एवमनभ्युपगमे पूर्वपर्यायस्य ध्वंसात् उत्तरस्य चानुत्पत्तेः शून्यताप्रसक्तिः । उत्तरपर्यायोत्पादाभ्युपगमे वा तदुत्पादः पूर्वपर्यायध्वंसात्मकः, प्रागभावाभावरूपत्वात् प्रध्वंसाभावाभाववत्। न च प्राक्तनपर्यायविनाशात्मकत्वे उत्तरपर्यायभवनस्य तद्विनाशे पूर्वपर्यायस्योन्मज्जनप्रसक्तिः, अभावाभावमात्रत्वानभ्युपगमावस्तुनः तस्य प्रतिनियतपरिणतिरूपत्वात्। भावा- 5 भावोभयरूपतया प्रतिनियतस्य वस्तुनः प्रादुर्भावे मुद्गरादिव्यापारानन्तरमुपलभ्यमानस्य कपालादेरभावस्य नाऽहेतुकता। न चोभयस्यैकव्यापारादुत्पत्तिविरोधः, तथाप्रतीयमाने विरोधासिद्धेः, ततस्तद्विपरीत एव विरोधसिद्धेः उभयैकान्ते प्रमाणानवतारात्। तथात्मकैकत्वेन प्रतीयमानं प्रति हेतोर्जनकत्वविरोधे घटक्षणसत्तायाः स्व-परविनाशोत्पादकत्वं विरुध्येत, एवं चाकारणा घटक्षणान्तरोत्पत्तिर्भवेत्। न च विनाशस्य है वैसा भी यहाँ नहीं है। [ पूर्वपर्यायविनाश-उत्तरपर्यायोत्पाद का एकत्व ] जैसे उत्पाद का आत्मा उत्तरपर्यायोत्पादरूप ही होता है वैसे पूर्वपर्यायविनाश भी उत्तरपर्यायोत्पादरूप ही होता है क्योंकि दोनों का देश-काल समान है। अथवा जैसे घटादि का अभाव अभावरूप होने से घटात्मक होता है वैसे पूर्वपर्यायविनाश भी समझ लेना। ऐसा अगर नहीं मानेंगे तो एक सन्तान में पूर्वपर्याय का ध्वंस तो होगा किन्तु तदात्मक उत्तरपर्याय का उत्पाद न होने से वहाँ शून्यावकाश 15 प्रसक्त होगा। वहाँ यदि उत्तरपर्यायोत्पाद स्वीकारना ही है तो उसे पूर्वपर्यायध्वंसात्मक ही मानना होगा क्योंकि प्रध्वंसाभाव क्या है - जैसे पूर्वपर्यायध्वंस ध्वंसाभावाभावरूप है वैसे प्रागभाव के अभावरूप भी है अतः उसे उत्पादरूप ही मानना पडेगा। पूर्वपक्ष :- यदि उत्तरपर्यायनिर्माण पूर्वपर्यायविनाशात्मक माना जायेगा तो उत्तरपर्याय का नाश होने पर तदात्मक पूर्वपर्यायविनाश की भी निवृत्ति हो जाने से पूर्वपर्याय के पुनराविर्भाव का संकट होगा। 20 उत्तरपक्ष :- नहीं होगी। कारण :- हम वस्तु को सिर्फ अभावाभावात्मक नहीं मानते किन्तु प्रतिनियतपरिणामरूप मानते हैं। अर्थात् दूधपर्यायविनाश और दधिपर्यायोत्पाद एक होता है, जब दधि पर्यायविनाश हो जाय तब दूधपर्यायविनाश का अभावात्मक नाश नहीं होता किन्तु नवनीत-घृतादि नियत परिणाम उत्पन्न होता है। हम मानते हैं वस्तुमात्र भावाभावोभयरूप होती है, अतः जब किसी नियत वस्तु का उत्पाद होता है तो वह भी उभयात्मक होने से, कपालादिरूप अभाव जब मोगरप्रहार 25 से उत्पन्न होता है तब उस में निर्हेतुकता की आपत्ति सावकाश नहीं क्योंकि वह सिर्फ अभावरूप नहीं है किन्तु कपालादिभावात्मक भी है। ऐसा नहीं कहना कि ‘एकहेतुव्यापार से भाव या अभाव उभय की उत्पत्ति विरुद्ध है' – क्यों कि विनाशात्मक कपाल की मोगरप्रहारजन्य उत्पत्ति जब सर्वजनविदित है तब विरोध कैसे सिद्ध होगा ? उलटे, सिर्फ एक ही भाव या अभाव की उत्पत्ति मानेंगे तो सर्वजनविदित प्रतीति से विरोध प्रसक्त होगा। एकान्त भाव या अभाव रूप वस्तु की सिद्धि के लिये कोई प्रमाण 30 गगन से धरती पर उतरनेवाला नहीं है। उभयात्मक एकरूप से प्रतीतिसिद्ध वस्तु की एक हेतु से उत्पत्ति का विरोध मानेंगे तो घटक्षणसत्ता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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