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________________ खण्ड-३, गाथा-२७ २८९ नाप्यनुभयस्वरूपा तन्निवृत्तिः, मृत्पिण्डविनाशकाले विवक्षितमृत्पिण्ड-घटव्यतिरिक्ताऽशेषजगदुत्पत्तिप्रसक्तेः । __अथ असद्रूपा तन्निवृत्तिः तत्रापि यदि कारणाभावरूपा तदा कारणाभावात् कार्योत्पादप्रसक्तेर्निर्हेतुकः कार्योत्पादः इति देश-कालाऽऽकारनियमः कार्यस्य न स्यात् । अभावाच्च कार्योत्पत्तौ विश्वमदरिद्रं भवेत् । नापि कार्याभावरूपा तन्निवृत्तिः कार्यानुत्पत्तिप्रसङ्गात्। नाप्युभयाभावस्वभावा द्वयोरप्यनुपलब्धिप्रसक्तेः । नाप्यनुभयाभावरूपा विवक्षितकारण-कार्यव्यतिरेकेण सर्वस्यानुपलब्धिप्रसक्तेः कारणस्योपलब्धिप्रसक्तेश्च। 5 कारणभावाभावरूपापि न तन्निवृत्तिः, कारणस्यानुगतव्यावृत्तताप्रसक्तेः। अत एव च सदसद्रूपं स्व-परस्वरूपापेक्षयाऽनेकान्तवादिभिर्वस्त्वभ्युपगम्यते। पररूपेणेव स्वरूपेणाप्यसत्त्वे वस्तुनो निःस्वभावताप्रसक्तेः । स्वरूपवत् पररूपेणापि सत्त्वे पररूपताप्रसक्तेः। एकरूपापेक्षयैव सदसत्त्वविरोधात् अन्यथा वस्त्वेव न कार्य उभय की उपलब्धि एक साथ प्रसक्त होगी। अनुभयस्वरूप भी कारणनिवृत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि मिट्टीपिण्डविनाशकाल में विवक्षित मिट्टीपिण्ड और घट को छोड कर पूरे जगत् की उत्पत्ति प्रसक्त होगी, 10 क्योंकि मिट्टीपिण्ड और घट उभय से भिन्न यानी अनुभय, वह पूरा जगत् है। कारणविनाशकाल में कारणनिवृत्ति अस्तित्व में आयेगी तब अनुभयरूप पूरा जगत् अस्तित्व में आयेगा। [ असद्रूप निवृत्ति के चतुर्विध विकल्पों की समीक्षा ] यदि कारणनिवृत्ति असद्रूप मानेंगे तो चार विकल्प खडे होंगे :- १ - वह कारणाभावरूप है ? २ – कार्याभावरूप है ? ३ – उभयाभावरूप है ? या ४ - अनुभयाभावरूप है ? प्रथम विकल्प 15 में, कारण का अभाव होने से कार्योत्पत्ति प्रसक्त होगी अतः कार्य निर्हेतुक उत्पन्न हो जायेगा। फलतः, नियत देश - नियतकाल-नियताकार से कार्योत्पत्ति का नियम नहीं रहेगा। तथा, अभावमूलक कार्योत्पत्ति मानने पर पूरा विश्व तवंगर बन जायेगा, क्योंकि तवंगर बनने के लिये किसी भी भाव की जरूरत नहीं है। दूसरे विकल्प में - कारणनिवृत्ति कार्याभावरूप होने से कार्य उत्पन्न ही नहीं होगा। तीसरे विकल्प में :- कारणनिवृत्ति यदि कारण-कार्य उभयाभावरूप होगी तो दोनों की अनुपलब्धि का अतिप्रसंग 20 आयेगा। चौथे विकल्प में :- यदि कारण-कार्य अनुभव (यानी उन दो से भिन्न सर्वपदार्थ) के अभावरूप कारण-निवृत्ति मानी जायेगी तो विवक्षित कारण-कार्य को छोड कर अन्य सभी पदार्थों का अनुपलम्भ प्रसक्त होगा, एवं उसी वक्त कारण की असद्रूप निवृत्ति कारणसत्ताविरोधी न होने से कारण की उपलब्धि प्रसक्त होगी। [ कारणनिवृत्ति के अन्यविध चार विकल्पों की समीक्षा ] 25 पुनः कारणनिवृत्ति कारणभावाभावरूप है ? कार्यभावाभावरूप है ? उभयभावाभावरूप है ? या अनुभयभावाभावरूप है ? प्रथम विकल्प में :- कारण के भावाभावरूप कारणनिवृत्ति मानेंगे तो कारण को भी अनुगतव्यावृत्त उभयात्मक मानना पडेगा। इसी लिये तो हमारे सर्वज्ञभाषित जैन दर्शन में वस्तु मात्र को अनेकान्तवादियों की ओर से स्व-रूप अपेक्षया सद्रूप एवं पररूपापेक्षया असद्रूप माना गया है। पररूप 30 से वस्तु असत् होती है न कि स्वरूप से। यदि स्वरूप से भी वस्तु को असत् मानेंगे तो वस्तु स्वभावविहीन बन जायेगी। एवं वस्तु स्वकीयरूप से सत् होती है, यदि पर-रूप से भी सत् होगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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