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________________ २६७ खण्ड-३, गाथा-१२ तेष्ववर्तमानमपि तत् सामान्य व्यक्त्यन्तरस्वरूपवत् । किञ्च, तदनुगतं रूपं व्यावृत्तरूपाभावे किं कार्यरूपम् उत कारणरूपम् आहोस्विदुभयात्मकम् उतानुभयस्वभावम् इति विकल्पाः। आद्यविकल्पे तस्याऽनित्यत्वप्रसक्तिः। द्वितीयेऽपि सैवेति न तत् सामान्यस्वभावम् । तृतीय पक्षे उभयदोषप्रसक्तिः । तुर्यविकल्पेऽप्यभावप्रसङ्ग इति विशेषाभावे नानुगतिरूपसामान्यसम्भवः, सम्भवेऽपि तत्प्रतिपादकं प्रमाणमभिधानीयम् । तच्चाऽक्षणिकत्वविरोधि कथञ्चित् क्षणिकत्वावभासितयाऽनुभूयत इति विपर्ययसाधकं भवेत्। कथञ्चित् 5 क्षणिकत्वावभासस्य भ्रान्तत्वे विपरीतावभासस्यापि भ्रान्तत्वप्रसक्तिः। तदवभासस्याऽभ्रान्तत्वे वा भ्रान्ताऽभ्रान्तरूपमेकं विज्ञानमेकान्तपक्षप्रतिक्षेप्यनेकान्तं साधयतीत्यलमतिप्रसङ्गेनेति स्थितमेतत्- ध्रौव्यमुत्पादव्ययव्यतिरेकेण न सम्भवति तौ च तदन्तरेणेत्युत्पाद-स्थितिभङ्गा अपरित्यक्तात्मस्वरूपास्तदितरस्वरूपत्वेन त्रैलक्षण्यं प्रत्येकमनुभवन्तो द्रव्यलक्षणतामुपयान्ति अन्यथा पृथक्पक्षोक्तदोषप्रसक्तिर्दुर्निवारेति व्यवस्थितमुत्पाद-स्थिति-भङ्गा द्रव्यलक्षणमिति ।।१२।। 10 भेद न होने पर उन में एक अनुगताकार भी नहीं रहेगा, विषयों के अभाव में भी एकाकारता नहीं रह पायेगी अतः सामान्य का लोप ही प्रसक्त हुआ। ऐसा कहना कि - इस तरह भेदों में जो नहीं रहेगा फिर भी उसे सामान्य (व्यक्ति) रूप मानने में बाध नहीं। - तो यह अनुचित है एक व्यक्ति में न रहनेवाले अन्यव्यक्तिस्वरूप को सामान्य नहीं माना जाता। मतलब, सामान्य को मानना है तो भेदों को भी मानना पड़ेगा। [ द्रव्य का लक्षण ‘उत्पाद-स्थिति-व्यय' - निष्कर्ष ] यदि भेद (यानी व्यावृत्तरूप) को मान्य नहीं रखेंगे तो अकेले ‘सामान्य' के प्रति चार विकल्पप्रश्न खडे होंगे - सामान्य कार्यरूप है ? सामान्य कारणरूप है ? उभयात्मक है ? या अनुभयस्वभाव है ? 'प्रथम विकल्प में सामान्य अनित्य बन जायेगा। दूसरे विकल्प में भी अनित्यता आपत्ति होगी, क्योंकि कारण कभी नित्य नहीं होता। अतः सामान्य कार्यरूप या कारणरूप नहीं हो सकता। तीसरे 20 विकल्प में उभयपक्ष के दोष प्रविष्ट होंगे। ४ चौथे विकल्प में सर्वथा अभाव ही प्रसक्त होगा। फलितार्थ, विशेष (कार्यादि के विरह में) अनुगताकाररूप सामान्य का संभव नहीं है। यदि उस के होने की सम्भावना करते रहेंगे तो उस के लिये भी प्रमाण खोजना पडेगा। यदि वह प्रमाण अक्षणिकत्वविरोधी कथंचित् क्षणिकत्वावभासिरूप से अनुभवारूढ होगा तो विपरीत स्वरूप की सिद्धि होगी। यदि कथंचित् क्षणिकत्वावभासि बोध भ्रान्त होगा तो विपरीतावभास भी भ्रान्त ठहरेगा। यदि उस भ्रान्त अवभास 25 को (कथंचित्) अभ्रान्त मानेंगे तो भ्रान्त-अभ्रान्त उभयरूप एक विज्ञान एकान्तपक्षविरोधी अनेकान्त मत की सिद्धि करेगा। अब अधिक विस्तार छोड दो, सिद्ध पक्ष यह हुआ कि द्रव्य का यह लक्षण है कि अपने स्वरूप को न छोडते हुए प्रत्येक (उत्पादादि तीन) ही अन्यद्वयस्वरूप होने से त्रिलक्षणानुविद्ध ऐसे उत्पाद-व्यय-स्थितिरूप त्रैलक्षण्य । यदि इस तरह मिलित त्रैलक्षण्य नहीं मानेंगे तो प्रत्येक पृथक् पृथक् पक्ष में कहे गये दोषों का निवारण नहीं हो सकेगा। आखरी निष्कर्ष यह है कि उत्पाद-स्थिति- 30 व्यय ये मिलित द्रव्य का लक्षण है।।१२।। 15 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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