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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १ सन्तानव्यवस्था भवेत् । किन्तु कार्यस्य स्वकालनियमात् तत्तदभावाऽविशेषेऽपि द्वितीय एव क्षणे भावः तथा अक्षणिकस्यापि प्रागपि विवक्षितकार्योत्पादनसामर्थ्ये ततो भवत् कार्यं स्वकालनियतमेव भविष्यतीति समानं पश्यामः । २६० न चाऽसति कारणविनाशे कार्योत्पत्तिर्न भवतीत्यत्र निबन्धनं किंचिदस्ति येनाऽक्षणिकात् कार्योत्पत्तिर्न 5 भवेत् । यदि चाऽक्षणिकस्य कार्योत्पत्तिक्षणे स्थितिः कार्योत्पत्तिप्रतिबन्धहेतुः एवं क्षणिकस्यापि तदा तदभावः किं न प्रतिबन्धहेतुर्भवेत् ? यदि च कारणविनाशे कार्योत्पत्तिः स प्रागिव चिरतरविनष्टे कारणेऽस्तीति तदापि कार्योत्पत्तिः स्यात् । अथ कार्योत्पत्तिकालेनैव कारणसंनिधेरुपयोगः, ननु कारणव्यावृत्तेरपि तदुत्पत्तिकाले नैव कश्चिदुपयोगः यतः कारणव्यावृत्तौ कार्यं भवेत् । कारणव्यावृत्तिश्च तदभावः स च प्राक् पश्चादपि कालान्तरेऽस्त्येवेति सर्वदा कार्योत्पत्तिप्रसक्तिरित्युक्तम् । 10 न च कारणस्य प्राग्भावित्वमात्रं कार्योत्पत्तावुपयोगः तस्याऽकारणाभिमतेष्वपि जगत्क्षणेषु भावात्, तथा सभी कार्य समानक्षणवृत्ति हो जाने से सन्तानव्यवस्था भी नहीं बनेगी किन्तु कार्य तो अपने नियत काल में (उत्तरक्षण में) ही होता है, मतलब उस वक्त पूर्वक्षणादि तत्तत् सभी क्षणों का अभाव रहने पर भी कार्य तो स्वपूर्वक्षणरूप कारण के उत्तर क्षण में ही होता है, ठीक ऐसे ही अक्षणिक वस्तु में शुरु से अन्त तक किसी अभिप्रेत कार्योत्पादन का सामर्थ्य रहते हुए भी, अक्षणिक भाव से होनेवाला कार्य 15 अपने नियत ( तत्तत् काल ) क्षणों में ही उत्पन्न होता है इस प्रकार कार्यों की स्वनियतकालीन उत्पत्ति क्षणिकवाद या अक्षणिकवाद दोनों पक्षों में समानतया हो सकती है यह हम सब को दृष्टिगोचर है । [ कारणव्यावृत्ति की कार्योत्पत्ति के लिये निरुपयोगिता ] कारणविनाश कार्योत्पत्तिकाल में होना ही चाहिये वह नहीं होगा तो कार्योत्पत्ति रुक जायेगी - इस बात में कोई तर्क नहीं है जिस से कहा जा सके कि अक्षणिक से ( दूसरे क्षण में कारणनाश 20 न होने से ) कार्योत्पत्ति नहीं होगी। कार्योत्पत्ति क्षण में अक्षणिक पदार्थ की स्थिति यदि बिना तर्क के कार्योत्पत्ति में प्रतिबन्धक मान ली जाय तो उस काल में क्षणिक भाव का अभाव भी कार्योत्पत्ति प्रतिबन्धक क्यों न माना जाय ? यदि कहें कि कारणनाश के रहते ही कार्योत्पत्ति हो सकती है, तब तो पूर्वक्षण की तरह चिरतरविनष्ट कारण के बाद भी कारणविनाश है तो उस वक्त कार्योत्पत्ति चिरतरविनष्ट कारण से भी मान लेनी पडेगी । यदि कहें कि कार्योत्पत्तिकाल में कारणसांनिध्य उपयोगी 25 नहीं है तो उस की सत्ता क्यों मानना ? तब यह भी कहो कि कार्योत्पत्तिकाल में कारणव्यावृत्ति ( ध्वंस) भी उपयोगी नहीं है जिस से कि कार्य उत्पन्न करने के लिये कारणव्यावृत्ति की गरज रहे । कारणव्यावृत्ति क्या है कारण का अभाव, वह तो पूर्व या उत्तर काल में सदा के लिये है, तो हरहमेश उस के रहते हुए कार्योत्पत्ति का अनिष्ट प्रसक्त होगा यह सब पहले कह दिया है। [ अक्षणिक भाव में कारणतासिद्धि से परिणामवाद सिद्धि ] 30 यदि कहें कि कार्य के लिये कारण का इतना उपयोग है कि पूर्वावस्थिति, तो सारे पूर्वक्षण के जगत् में कारणता प्रसक्त होगी, यद्यपि पूरा पूर्वक्षण का जगत् किसी एक कार्य का कारण नहीं होता किन्तु पूर्वावस्थित होता है। यदि उन से कारण को पृथक् दिखाने के लिये कोई अगोचर विशेष - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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