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________________ 15 खण्ड-३, गाथा-५ यतो घटावसायेऽपि तदवयवानाममुल्लेखश्चावसीयते नापरोऽवयवी 'वर्णाकृत्यक्षराकारशून्यस्य तस्य केनचिदप्य(न)नुभवाद् न कल्पनाऽवसेयोऽप्यवयवी सत्तामासादयति। अनादिवासनासमुत्थं व्यवहारमात्रकमेवेदं मिथ्यार्थं ज्ञानम्। न च व्यवहारमात्रादेव बहिरेकं वस्तु सिद्धयति 'नीलादीनां स्वभावः' इत्यत्रापि व्यवहारैकत्वात् स्वभावस्यैकताप्राप्तेः । अथ तत्र प्रतिभासभेदादेकत्वं बाध्यते तर्हि अत्रापि मध्योर्ध्वादिनि सभेदात् घटादेरेकत्वं बाध्यत एवेति न बाह्योर्थोस्त्यवयविरूपः। नापि 5 परमाणुस्वभावः मध्योर्ध्वादिविभागप्रतिभासेऽप्यणूनामप्रतिभासमानात् । स्थूलरूपो हि नीलाद्यवभासः संवेद्यते, न च परमाणुषु प्रत्येकं स्थूलरूपसम्भवः, तथात्चे परमाणुत्वाऽयोगात् । नापि तेषु समुदितेषु स्थूलरूपसंगतिः, तथावस्थाभाविनामप्यणूनां स्वरूपतः सूक्ष्मत्वात्। न च तद्व्यतिरिक्तः समुदायः, तथात्वे द्रव्यवादप्रसङ्गात् होते दिखते ही हैं। इसी प्रकार अवयवी से पृथक् अवयवों का (प्रदेश समानता होने पर भी) निर्भास नहीं होता अतः 'अवयवी' नाम से कोई व्यवहारमात्र विषय नहीं है। 10 यदि कहें - ‘घट एक है' इस प्रतीति से अवयवों से पृथक् अवयवी की सत्ता है' - तो गलत है, क्योंकि घट की ज्ञायमान दशा में भी उस के अवयवों (अग्र-पश्चादादि भाग) का ही दर्शन एवं उल्लेख लक्ष में आता है, अवयवों से पृथक् कोई अवयवी नहीं, क्योंकि वर्ण-आकृति-अक्षर-आकार (देखिये भा०२ पृ० १६९/१४) से शून्य अवयवी का अनुभव किसी को नहीं होता। मतलब, विकल्पग्राह्य होने पर भी अवयवी स्वतन्त्र सत्तालाभ वंचित है। [ व्यवहार के बल पर बहिरर्थसिद्धि अशक्य ] प्रश्न :- अर्थ मिथ्या है तो उस का ज्ञान कैसे ? उत्तर :- वह तो सिर्फ एक व्यवहारमात्र है जो अनादिकालीन वासना से जन्म लेता है। व्यवहार मात्र से वास्तव में कोई बाह्य वस्तुसिद्धि नहीं होती। अन्यथा जब ऐसा व्यवहार होता है कि 'नीलादि का स्वभाव एक ही है' तब इस एकत्वसूचक व्यवहार से नीलादि स्वभाव के भेद का उच्छेद, एकत्व 20 की आपत्ति होगी। यदि वहाँ प्रतिभासभेद होने से एकत्व का बाध मानेंगे तो यहाँ मध्य-ऊर्ध्वादि भागों के प्रतिभासभेद से घटादि का एकत्व बाधग्रस्त ही है, अतः सिद्ध होता है की अवयवीरूप कोई बाह्यार्थ नहीं है। तो क्या परमाणुस्वभाव भी असिद्ध है ? हाँ, घटादि के मध्य-ऊर्ध्वादि खण्डों का जैसे प्रतिभास होता है वैसे परमाणुओं का प्रतिभास कभी नहीं होता। नीलादिप्रतिभास स्थूलरूप से ही संविदित 25 होता है, एक एक परमाणु में स्थूल रूप का अवभास नहीं होता, यदि होगा तो उसे परमाणु कौन कहेगा ? समुच्चयरूप परमाणु (परमाणुपुञ्ज) में भी स्थूलता संगत नहीं होती, क्योंकि हजारो परमाणु इकट्ठे होने पर भी स्वरूपतः जो उन में सूक्ष्मता है वह दूर नहीं हो जाती। परमाणुओं से पृथक् तो कोई समुच्चय होता नहीं है। मानेंगे तो विज्ञानवादी आदि को 'द्रव्य'सत्ता मान लेना पडेगा। वहाँ भी कैसे दोष लगते हैं यह पहले कहा जा चुका है। सारांश, परमाणुओं में (प्रत्येक या समुदाय) 30 7. वर्णाकृत्यक्षराकारशून्यं गोत्वं हि वर्ण्यते १४७।। वर्णो = नीलादिः, आकृतिः = संस्थानं, अक्षरं = गवादिशब्दः, तेषामाकारो यथाप्रतीतः तेन शून्यं गोत्वं हि सामान्यवादिभिर्वण्यते । (प्र० वा० १४७ द्वि० परिच्छेद-पृष्ठ १४५) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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