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________________ १४६ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ अप्रतिभासविषयस्याऽतत्त्वरूपत्वात् ?! न च संवादित्वादपि स्तम्भादेः सत्यत्वम्, समानजातीयोत्तरकालभाविज्ञानवृत्तिलक्षणस्य संवादस्य यावत्तिमिरं तावदिन्दुद्वयादावपि भावात् । नापि भिन्नजातीयाद् ज्ञानसंवादात्, भ्रान्तज्ञानावभासिनो रजतादेः शुद्धि(?क्ति)काज्ञानसंवादात् सत्यत्वप्रसक्तेः । न चैकार्थाद् भिन्नजातीयज्ञानसंवादात्, एकार्थत्वे पूर्वापरज्ञानयोरविशेषात् संवादज्ञानवत् संवादस्यापि सत्यत्वव्यवस्थापकत्वाऽयोगात्। न च रूप-स्पर्शज्ञानयोर्विजातीययोरेकार्थविषयत्वम् रूप-स्पर्शयोरभेदात् । न च रूप-स्पर्शाधिकरणमेकं द्रव्यं तयोर्विषयः, एकत्वे प्रमाणाऽवृत्तेः प्रतिपादितत्वात् । नापि भिन्नविषयात् संवादप्रत्ययात् (संवादे?) सत्त्वसिद्धिः, शुद्धि(?क्ति)कादर्शनात् भ्रान्तदृगवगतरजतादेः प्र(?स)त्यताप्रसङ्गात्। न च स्पर्शज्ञानमाभावे नोपलब्धं सर्वसत्यप्रतिभासमानस्य दशायां तदभावेऽपि तदुदयोपलब्धेः । न च स्वप्न-जाग्रद्दशाभाविनोर्ज्ञानयोः कश्चिद्विशेष इति न संवादादपि सत्यता। न च जाग्रहशायामिव स्वप्नदशायामपि यदव(भास)ति तत् 10 तो अन्त न होने से अनवस्थाप्रसंग गले पडेगा। अत एव बाधाभाव से अर्थतथात्वसिद्धि शक्य नहीं। वास्तव में तो स्तम्भादि का कोई वास्तविक तथात्व (या तत्त्व) है ही नहीं। कारण, तथात्व का वह सम्बन्ध प्रतिभासविषय ही नहीं है। जब वह प्रतिभासविषय नहीं, तब तथात्व का अभाव क्यों नहीं होगा ? जो प्रतिभासित नहीं होता वह तत्त्वरूप भी नहीं होता। संवादित्व भी स्तम्भादि की सत्यता का मूलाधार नहीं बन सकता। कारण :- समानजातीय 15 उत्तरकालभावि ज्ञानप्रवृत्ति ही संवाद का लक्षण है, ऐसा संवाद तो जब तक तिमिरग्रस्तता है तब तक चन्द्रयुगलस्थल में विद्यमान है, किन्तु उसे कोई सत्य नहीं मानता । भिन्नजातीय उत्तरकालभाविज्ञानरूपसंवाद से भी स्तम्भादि की सत्यता सिद्ध नहीं होती। कारण :- वैसा संवाद यानी शुक्तिज्ञानरूप संवाद तो भ्रान्तज्ञानावभासि रजतादिस्थल में भी सुलभ है, तो भ्रान्तज्ञानावभासि रजतादि को भी सत्य मानना पडेगा। यदि कहें कि 'भिन्नजातीय सही, किन्तु ज्ञानरूप संवाद एकार्थक भी होना चाहिये यहाँ रजत 20 शुक्तिभिन्न अर्थ है, शुक्तिज्ञानसंवाद भिन्नार्थक है' - तो यह सम्भव नहीं, क्योंकि तब पूर्वापर संवाद्य संवादक ज्ञान में कोई भेद ही नहीं है, इस स्थिति में जैसे संवाद्यज्ञान किसी रजतादि का व्यवस्थापक नहीं है तो उत्तरकालीन समान – या भिन्न जातीय संवादकज्ञान भी रजतादि के सत्यत्व की व्यवस्था क्यों कर सकेगा ? [स्वप्नदशावत् जागृति में भी द्रव्यादि की असिद्धि ] 25 रजतादि बाह्यार्थ की सत्यता द्रव्यादि की सिद्धि पर अवलंबित है, किन्तु वही दुर्गम है। रूप और स्पर्श का एक अधिकरणभूत द्रव्य किसी प्रमाण का विषय नहीं है न तो बाधाभाव से सिद्ध है, रूप-स्पर्शउभय एक भी प्रतीति का विषय नहीं है। एक अधिकरण द्रव्य के ग्रहणार्थ कोई प्रमाणवृत्ति तैयार नहीं है यह पहले कहा जा चुका है। भिन्नविषयक संवाद प्रतीति से भी द्रव्यसत्ता सिद्ध नहीं होती, क्योंकि भिन्न विषयक संवाद के रहते हुए वस्तु सिद्ध होने का मानने पर तो शुक्ति के दर्शन 30 के बाद भ्रान्तदर्शनगृहीत रजतादि में भी सत्यता प्रसक्त होगी। अर्थ (द्रव्य) के बिना स्पर्श ज्ञान नहीं उपलब्ध होगा, ऐसा नहीं है, क्योंकि सभी को स्वप्न में सत्यरूप से भासमान अर्थज्ञान उस दशा में अर्थ के न होने पर भी उदित होता है यह दिखता है। स्वप्नज्ञान जाग्रद्दशाज्ञान इन दोनों में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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