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________________ ८२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ वाऽहेतुकत्वादहेतुमत्त्वाऽभ्युपगमोऽभावस्य विरुध्येत। हेतुमत्त्वेऽभावस्य कार्यत्वाद् अभावरूपताप्रच्युतिप्रसङ्गः, भावस्य कार्यलक्षणत्वात्। तथाहि- यत् स्वकारणसद्भावे भवति तदभावे च न भवति तत् कार्यमुच्यते, भवनधर्मा च कथं न भावः ? यतो 'भवति' इति भावः उच्यते इति । अङ्कुरादेरपि भावशब्दप्रवृत्तिनिमित्तं नापरमुपलभ्यते, 5 तच्चेदभावेऽप्यस्ति कथमसौ न भावः ? न चार्थक्रियासामर्थ्य भावशब्दप्रवृत्तिनिमित्तम् तथा(?तच्च) भावे नास्तीति वक्तव्यम्, सर्वसामर्थ्यविकलस्य तस्य प्रतीतिविषयताऽभावात् कथं हेतुमत्त्वावगति: ? प्रतीतिजनकत्वे वा कथं न सामर्थ्ययोग्यता ? अथ कार्यत्वे सत्यपि यथा घट-पटादिनां भेदः प्रतिनियतविज्ञानविषयतया, तथा भावाऽभावयोः समानेऽपि कार्यत्वे सत्प्रत्ययविषयस्य भावता असत्प्रत्ययविषयस्य चाऽभावरूपतेति । - असदेतत्, असत्प्रत्ययविषयत्वे कार्यताऽप्यस्य दूरोत्सारितैव। अथ स्वहेतुभावे भावात् कार्यताऽस्य 10 प्रयुक्त ‘नञ्' से सिर्फ भावक्रिया का निषेध ही निरूपित होगा, न कि भावान्तर। अथवा यहाँ दण्डादि किसी भावान्तर का कारक नहीं सिद्ध होगा, फलतः अभाव अपने आप अहेतुक सिद्ध होगा, क्योंकि जो अकारक होता है वह अहेतुक भी होता है, अत एव अभाव में हेतुप्रयुक्तत्व का स्वीकार विरोधग्रस्त हो जायेगा। [ अभाव में भावत्व का अनिष्टापादन ] कैसे यह देखिये - अपने कारणों के हाजिर रहने पर जो हाजिर होता है और उन के अभाव 15 के होने पर जो नहिं होता - उसे कार्य कहते हैं। कारणों के जरिये जो भवनधर्मवाला (यानी अस्तित्व धारण करनेवाला) होता है उसे 'भाव' क्यों न कहा जाय ? (यदि अपने कारणों से प्रध्वंसाभाव भवन होता है तो वह अभाव नहीं, भाव ही हो सकता है - यह कथनतात्पर्य समझिये)। 'भाव' कहते हैं होनेवाले पदार्थ को, अंकूरादि के लिये भी 'भाव' शब्दप्रयोग का निमित्त यही है, और कोई नहीं, यही निमित्त अभाव को भी लागु होता है तो वह भी 'भाव' क्यों न कहा जाय ? 20 शंका :- भावशब्दप्रयोग का निमित्त है अर्थक्रियासामर्थ्य, अभाव में वह है नहीं, तो उसे भाव क्यों कहा जाय ? उत्तर :- ऐसा मत बोलना, जो सर्वशक्तिविकल है उस में प्रतीतिविषयता का अन्वय भी जब शक्य नहीं तब हेतुमत्त्व (यानी किसी का कार्यत्व) भी कैसे हो सकता है ? अगर प्रतीतिविषयता का अन्वय भी जब शक्य नहीं तब हेतुमत्त्व (यानी किसी का कार्यत्व) भी कैसे हो सकता है ? 25 अगर प्रतीतिविषयता जो कि तज्जनकता ही है, उस में मानी जाय तो सर्वशक्तिवैकल्य कैसे होगा ? शंका :- कार्यता के रहते हए भी जैसे घट-पटादि में भेद होता है वैसे भाव-अभाव दोनों में नियतप्रतीतिविषयता के जरिये कार्यत्व तुल्यतया होने पर भी जिस में 'सत्' आकारप्रतीतिविषयता रहती है वह 'भाव' होता है, तथा असत्-आकारप्रतीतिविषयता होती है वह 'अभाव' होता है। ___ उत्तर :- यह भी गलत शंका है। असत्आकारप्रतीतिविषयता अभाव में स्वीकारने पर तो कार्यता 30 त्वरित वहाँ से भाग जायेगी। यदि अपने हेतुओं उस का (अभाव का) आविर्भाव होने के कारण उसे 'भाव' मानेंगे तो सत्-आकार प्रत्ययविषयता बलात् गले में आ पडेगी। अभाव को भावात्मक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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