________________
५२
सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १
कालभावी, तत्रापि वक्तव्यम्-कि B1 ज्ञातः स विशेषः उताऽज्ञातः B2 ? तत्र B2 नाऽज्ञातः, अज्ञातस्य सत्त्वेनाऽप्यसिद्धत्वात् । अथ B1 ज्ञातोऽसौ विशेषः, तत्रापि वक्तव्यम्-उत्तरकालभावी बाधाविरहः कि B1a पूर्वज्ञानेन ज्ञायते, B1b आहोस्विदुत्तरकालभाविना ?
____Bla तत्र न तावत् पूर्वज्ञानेनोत्तरकालभावी बाधाविरहो ज्ञातुं शक्यः, तद्धि स्वसमानकालं सन्निहितं नीलादिकमवभासयतु, न पुनरुत्तरकालमप्यत्र बाधकप्रत्ययो न प्रतिष्यत इत्यवगमयितु शक्नोति. पर्वमनत्पन्नबाधकानामप्युत्तरकालबाध्यत्वदर्शनात। B2b प्रथोत्तरज्ञानेन ज्ञायत किंतूत्तरकालभावी बाधाविरहः कथं पूर्वज्ञानस्य विनष्टस्य विशेषः ? भिन्नकालस्य विनष्टं प्रति विशेषत्वाऽयोगात्।
किंच ज्ञायमानत्वेऽपि केशोण्डकादेरसत्यत्वदर्शनाद , बाधाऽभावस्य ज्ञायमानत्वेऽपि कथं सत्यत्वम् ? तज्ज्ञानस्य सत्यत्वादिति चेत् ? तस्य कुतः सत्यत्वम् ? न प्रमेयसत्यत्वात् , इतरेतराश्रयदोषविरह को नहीं ले सकते, क्योंकि यह तो मिथ्याज्ञान में भी होता है, कारण-मिथ्याज्ञान का उदय बाधकज्ञान से असंस्कृष्ट ही होता है, अतः वह तत्कालभावी बाधाविरह से रहित ही हुआ।
अगर आप कहें-B उत्तरकालभावी बाधाविरह विज्ञान का स्वरूप विशेष है, तो यह विकल्प भी मिथ्या है । क्योंकि यहां प्रश्न होगा-वह उत्तरकालभावी बाधाविरह B1 ज्ञात होता हुआ विज्ञान का स्वरूप विशेष बनता है या B2 अज्ञात ही रहता हुआ? B2 अज्ञात रहता हुआ वह बाधाविरह स्वरूप विशेष नहीं माना जा सकता क्योंकि जो अज्ञात है उसके वहाँ होने पर भी वह सत् रूप से भी असिद्ध है, क्योंकि जब अज्ञात ही है तब आप कैसे कह सकते हैं कि वह सत् है ? और जब वह सत् रूप से सिद्ध नहीं है तब विज्ञान का स्वरूपविशेष कैसे हो सकता है ? अब अगर कहें B] ज्ञात होकर बाधाविरह विज्ञान का स्वरूप विशेष बनता है तब यह बताना होगा कि वह उत्तरकालभावी बाधाविरह B1a पूर्वज्ञान से ज्ञात होता है ? या B1b उत्तरकालभावी ज्ञान से ज्ञात होता है ?
यहाँ प्रथम विकल्प मानना अशक्य है, क्योंकि पूर्वज्ञान से उत्तरकालभावी बाधाविरह का बोध होना शक्य नहीं है। कारण ज्ञान अपने समानकालीन एवं सान्निध्यवर्ती नील-पीतादि पदार्थ का बोध करा सकता है-यह तो स्वीकार्य है कि ज्ञान यह नहीं जान स. यहाँ कोई बाधक ज्ञान नहीं उत्पन्न होगा। क्योंकि ऐसा देखने में आता है कि पूर्वकाल में बाधक न भी उत्पन्न हो और वहाँ ज्ञान बाधित न भी हो, किन्तु उत्तरकाल में बाधक ज्ञान उत्पन्न होता है और उससे पूर्वज्ञान बाधित भी होता है।
___ अगर आप कहें-पूर्वज्ञान से नहीं सही, किन्तु उत्तरज्ञान से उत्तर कालभावी बाधाविरह ज्ञात होगा-तब इसमें हमारा कोई विरोध तो नहीं है, भले बाधाविरह इस प्रकार ज्ञात हो, किन्तु प्रश्न यह है कि उत्तरकालभावी बधाविरह ज्ञात होता हुआ भी विनष्ट पूर्वज्ञान का स्वरूपविशेष कैसे हो सकता है ? क्योंकि, विनष्ट पदार्थ से भिन्न उत्तरकालवर्ती वस्तु उस विनष्ट पदार्थ का विशेष धर्म नहीं बन सकता । यह एक दोष है ।
[ज्ञायमान बाधविरह को सत्य कैसे माना जाय ? ] इसके अतिरिक्त दूसरा दोष यह है कि बाधाविरह ज्ञात होता हुआ ही कार्य करता हो तब भी वह सत्य है या असत्य यह शंका बनी रहेगी । क्योंकि केशोण्डुक (चक्षु के समक्ष कभी कभी दिखाई
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org