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________________ प्रथम खण्ड-का० १-प्रामाण्यवाद ४१ ध्यतिरेकाऽव्यतिरेकपक्षस्तु शक्तीनां विरोधाऽनवस्थोभयपक्षोक्तदोषादिपरिहाराद् विनाऽनुद्घोष्यः । अनुभयपक्षस्तु न युक्तः, परस्परपरिहारस्थितरूपाणामेकनिषेधस्यापरविधाननान्तरीयकत्वात् न च विहितस्य पुनस्तस्यैव निषेधः, विधि-प्रतिषेधयोरेकत्र विरोधात् । ज्ञानादि भावविशेष बेचारे स्वतः उत्पन्न नहीं हो सकते। एवं ऐसा भी नहीं कह सकते हैं-कि ये शक्तियां अपने आधारभूत भावों से भिन्न हैं, जिससे अपने आधारभूत भावों के कारणों से भाव के उत्पन्न होने पर भी उन्हीं कारणों से वे शक्तियां स्वयं उत्पन्न न हो सके । ( व्यतिरेके स्वाश्रयै.... ) यदि इन शक्तियों को आधारभूतभावों से भिन्न माना जाय तो उन से उत्पन्न न होने के कारण इन शक्तियों का अपने आधारभूत भावों के साथ संबंध नहीं होना चाहिये । जो पदार्थ भिन्न होते हैं उनमें कार्यकारणभाव को छोडकर कोई अन्य संबंध नहीं होता। अलबत्ता आश्रय-आश्रयिभाव संबंध हो सकता है, किन्तु यह भी यदि कार्य-कारण भाव न होने पर हो तो अतिप्रसंग होने से ऐसे आश्रय-आश्रयिभाव का निषेध किया जाने वाला है। [ शक्ति का आश्रय के साथ धर्म-धर्मिभाव दुर्गम है ] (धर्मत्वाच्छक्ते....) अब यदि आप कहें-'शक्ति धर्म है इसलिये उसका आधारभूत धर्मी यह आश्रय भी है, क्योंकि विना धर्मी धर्म नहीं रह सकता । तात्पर्य, कार्य-कारणभाव न होने पर भी आश्रय-आश्रयिभाव हो सकता है'-तो यह कथन भी युक्त नहीं है, क्योंकि धर्म धर्मी का परतंत्र होता है, अत: परतन्त्रता न होने पर तात्त्विक दृष्टि से शक्ति धर्मरूप नहीं हो सकती। अगर कहेंपरतन्त्रता जैसी कोई वस्तु ही नहीं है, क्योंकि अगर वह हो तब सत की है या असत् की ? सत् पदार्थ की परतन्त्रता नहीं हो सकती क्योंकि जो सत् है वह किसी को भी अपेक्षा से रहित होता है और जो असत् है वह गगनकुसुमवत् असत् होने के कारण ही किसी को अपेक्षा से रहित होता है । ( अनिमित्ताश्चेमा:....) फिर यदि ये शक्तियां बिना निमित्त कारण होती हो तो वे देश-काल और द्रव्य के नियम का पालन नहीं करेगी। तात्पर्य, वे शक्तियां नियतरूप से अमुक ही देश में रहने वाली, अमुक काल में ही रहने वाली एवं अमुक ही आश्रयद्रव्य में रहने वाली हो ऐसा नियम नहीं बन सकेगा। जो सत् पदार्थ निनिमित्तक होता है वह किसी अमुक ही देश-काल या द्रव्य के साथ ही संबन्ध रखने वाला हो ऐसा नियम नहीं बन सकता । जो सर्वथा असत् होते हैं उनमें भी अमुक ही देश-काल और द्रव्य के साथ संबन्ध हो ऐसा नियम भी नहीं हो सकता। (तद्धि किंचित्....) तो यहां शक्ति के बारे में दो विकल्प हो सकते हैं, शक्ति किसी अन्य को आयत्त है या अनायत्त ? अगर आयत्त हो तो उसमें उसकी लीनता होनी चाहिये और अनायत्त हो तब उसमें उसकी लीनता नहीं हो सकती। अब यदि शक्तियां सब प्रकार के नियत संबन्ध से मुक्त हो तो वे किसी भी पदार्थ में से कभी भी व्यावृत्त नहीं होनी चाहिये । फलतः सर्व भाव, नियत यानी अमुक अमुक शक्ति वाले अवश्य होते हैं यह जो प्रमाण सिद्ध है वह नहीं बन सकेगा। [शक्ति आश्रय से भिन्नाभिन्न या अनुभय नहीं है ] शक्ति अपने आश्रय से व्यतिरिक्त है या अव्यतिरिक्त, इन दो पक्ष की सदोषता देखकर यदि व्यतिरिक्त-अव्यतिरिक्त यह उभय पक्ष का स्वीकार किया जाय तो वह तो प्रस्तुत करने की स्थिति में भी आप नहीं है, क्योंकि व्यतिरिक्त और अव्यतिरिक्त इन दोनों का परस्पर विरोध है । अगर, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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