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________________ प्रथमखण्ड-शुद्धिकरण पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ४०६ २१ व ऐश्कार्य का ऐश्वर्य ४१२ १८ मिल कर स्थिर रह कर ४१६ ३ क्कचित क्वचित ४२७ २३ सिद्धिस्वरूपादि सिद्धि ४३३ १ तद्सव तदसत् ___E प्यकनेकान्ते प्यनेकान्ते ४३६ १४ के सम्बन्ध के लिये के लिये ४४१ २ सम्बधो सम्बन्धो ४६१ २१ मुख्या मुख्य २६ कुंडली कुडल ४७१ २१ तीसरे के तीसरे के लिये ४७८ ८ यत्वाद्य यत्त्वाद्य ४८७ ८ कुरादितु कुरादिक ४८६ १५ काणुसरणा कानुसरणा ४९२ १६ जन्य नहीं जन्य ही ५९४ १०-११ तदभास तदाभास ५०० २१ प्राप्ति प्रसिद्ध व्याप्ति सिद्ध ५१४ ११ स्वयकार्य स्वकार्य ५१९ ३२ मानी होगी माननी होगी ५२४ १८ जुलाही ३१ यदि में में यदि ५२५ २० एक को एक एक को ५२७ १७ अत: यतः ५३१ २४ प्रमणाभूत प्रमाणभूत ५३२ ३ गुणानना ५३४ ५ करण कारण १६ होने से होने में ५३५ १२ प्रतिपाद्य प्रतिपादक पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ५४४ १३ कि कि-जिस २० प्रभत्व प्रभवत्व ५४६ ६ नकान्तिको नैकान्तिको ५४६ १ कच किच ५६० १५ कि जाय की जाय ५७० २० केवल कवल ५८३ २२ उद्भवन उद्भावन ५८४ १९ लोक के लोक का ५८५ २० बुद्धि बुद्धि में ५८६ २१ [१४७-४] [५०३-५] ५९० २३ है है [५८३-२] १६ उपकारक उपकार ५९२ २८ होने की होने के ५९५ २८ सन्नाता सन्ताना ६०१४-१३ संवदेन संवेदन ६०६ ८ विशिष्टि विशिष्ट ६०८ ३२ प्रकाश ही मेघही ६१२ २० साथ ज्ञान २४ बौद्धमत बौद्धमत ६१९ १६ ग्राह्य से ६२३ २२ परमाणुस्थिति परमाणु की सत्ता का भान होता है। उसी तरह, वस्तु को मध्यकालीन जुलाहा से ग्राह्य गुणाना स्थिति ६३२ ३ गुणच्छेद गुणोच्छेद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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