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६६७
पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध १४३ १ व्यक्तिनाम्
१५२
३४ होने से ३ विषत्वं
१५८
१६२ १० दौष
१६६ १ त्वनुमाना
१६८ १३ जाने के
१७० २० तीक्ष्ण
१७२ २६ श्रप्रमाण प्रमाण अप्रमाण है
है
१७७
३१
अवश्यक
१७६
२२ तुल्परूप १५ में अर्थ
१८७ १९१ २९ सर्वज्ञा
१६६ २८ के तत्व
२०५ १ तक्तृत्वं २१७ ५ तीतता २३७ ३२ अतिषेध २२४ २३ संबद्ध २४५ १५ प्रतिनियत
२९ वह २६२ ७ जनेतद्वि
२६६ २६ यह
३१ विषय विषय
'समय'
२६७ २०
२७१ ३ शत्त-यव २१ का भी २२ प्रषधों को भान से
२७५ २४ २७६ ३ इति इति २७६ १६ नहीं नहीं २८५ २२ दूसरे कोई
२०६ १५ सदाय २८६ २५ ज्ञान में २९५ ३४ श्रादि)
२६६ ६ लणम
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शुद्ध
व्यक्तीनाम्
होने से वह विषयत्वं
दोब
सम्मतिप्रकरण - नयकाण्ड १
त्वमनुमाना
जाने से
तिक्ष्ण
अवश्य
तुल्यरूप
और अर्थ
सर्वज्ञा
तत्त्व के
वक्त त्वं
तोता
प्रतिषेध
सम्बन्ध
का प्रतिनियत
जने तद्वि
है यह
विषय
में 'समय'
शक्त्यव
की भी औषधों की
से भान
इति
नहीं
दूसरे किसी
समुदाय
के ज्ञान में
आदि का )
लक्षणम
पृष्ठ पंक्ति
अशुद्ध
२९७ २४ लोक
२६९ ६
३००
३१०
३४२
योग
२ इत्येवं भूत
२५ भिन्न
५ पूर्वक्ष
३ स्यः
३१४
३२२ १०
३४०
३२
३४१ २४
३४६ ११
३६६
३५६ १२ ननु ।
३६१
३७२
३७६
३८०
३८०
३८१
३८६ १२ क्यों
५
१३
१
प्रत्क्षत्व
प्रमाण
तब तब
चिदके
ज्ञान पूर्व
न्नवृ तः
पूर्व का
बह्यारम्भ
२४ कंताणं
१६ कर्तृत्वादी
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३३ श्लोक इस
१६
में
१८
तभी
३९५ २६ व्याप्ति है ४०३
२६ में निवृत्ति
शुद्ध
लोक में
योगे
इत्येवंभूत
भिन्न भिन्न
पूर्वपक्ष
यः
प्रत्यक्षत्व
यमाण
तब तक
चिदेक
। ननु
ज्ञान के पूर्व
तन्निवृत्ति: पूर्व जैसा
सभी
३६२ ३२ प्रवचन
प्रवर्तन
पृष्ठ ३९३ में अन्तिम पंक्ति में 'किन्तु यह' इसके
बाद इतना जोड़ना होगा- [ शरीर प्रवर्तन निवर्तनरूप कार्य अन्य शरीर से जीव करता हो ऐसा नहीं है, अतः यहां कार्य शरीरद्रोही हुआ । यदि कहें कि शरीर के विना भी कार्य का होना यह सिर्फ शरीर के लिये ही दिखाई देता है, अतः शरीर भिन्न पदार्थों का प्रवर्तन निवर्तन शरीर के विना नहीं हो सकता तो यह ठीक नहीं है क्योंकि हमें तो इतना ही सिद्ध करना है कि शरीर के बिना ]
बह्वारभ्भ कंताणं कडाणं कर्तृत्ववादी
क्योंकि
इस श्लोक
में वैचित्र्य साम्य
व्याप्ति भी है वस्तु से निवृत्ति
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