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प्रथम खण्ड-का० १- प्रामाण्यवाद
(B) श्रथ संवादापेक्षः प्रामाण्यविनिश्चयः, सोऽपि न युक्तः, यतः B 1 संवादकं ज्ञानं कि समानजातीयमभ्युपगम्यते ? B2 प्राहोस्विद् भिन्नजातीयम् ? इति पुनरपि विकल्पद्वयम् ।
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B1 तत्र यदि समानजातीयं संवादकमभ्युपगम्यते, तदाऽत्रापि वक्तव्यम् Bla किमेकसंतानप्रभवं ? B1b भिन्नसंतानप्रभवं वा ? B1b यदि भिन्नसंतानप्रभवं समानजातीयं ज्ञानान्तरं संवादकमित्यभ्युपगमः, अयमप्यनुपपन्नः, प्रतिप्रसंगात्, प्रतिप्रसंगश्च देवदत्तघटविज्ञानं प्रति यज्ञदत्तघटान्तरविज्ञानस्यापि संवादकत्वप्रसक्तेः । श्रथ Bla समानसन्तानप्रभवं समानजातीयं ज्ञानान्तरं संवादकमभ्युपगम्यते, तदाऽत्रापि वक्तव्यम्, किं तत् Blac पूर्वप्रमाणाभिमतविज्ञानगृहीतार्थविषयम् ? Blad उत भिन्नविषयम् ? इति ।
B1ac तत्र यद्येकार्थविषयमिति पक्षः, सोऽनुपपन्नः, एकार्थविषयत्वे संवाद्य-संवादकयोरविशेषात् तथाहि - एक विषयत्वे सति यथा प्राक्तनमुत्तरकालभाविनो विज्ञानस्यैकसन्तानप्रभवस्य समानजातीयस्य न संवादकं तथोत्तरकालभाव्यपि न स्यात् । कि च तदुत्तरकालभावि समानजातीयमेकविषयं कुतः प्रमाणत्वेन सिद्धम् - येन प्रथमस्य प्रामाण्यं निश्चाययति ? 'तदुत्तरकालभाविनोऽन्यस्मात् तथाविधादेव' इति चेत् ? तहि तस्याप्यन्यस्मात् तथाविधादेवेत्यनवस्था । अथ 'उत्तरकालभाविनस्तथाविधस्य प्रथमप्रमाणात् प्रामाण्यनिश्चय:' तह प्रथमस्योत्तरकालभाविनः प्रमाणात् तन्निश्चयः, उत्तरकालभाविनोऽपि प्रथमप्रमाणादिति तदेवेतरेतराश्रयत्वम् ।
[ संवाद की अपेक्षा प्रामाण्यनिश्चय में अनेक विकल्प ]
(B) यदि दूसरे विकल्प में आप कहें- प्रामाण्य का निश्चय संवाद की अपेक्षा से होता है तो यह भी युक्त नहीं है, क्योंकि यहां भी दो विकल्प हैं BI संवादी ज्ञान सजातीय है अथवा B2 भिन्नजातीय है ?
B1 यदि आप संत्रादी ज्ञान को सजातीय मानते हैं तब यह बताईये कि वह सजातीय ज्ञान क्या Bla उसी ज्ञान संतान में होने वाला है B1b अथवा उस ज्ञान सन्तान से भिन्न सन्तानों में उत्पन्न होने वाला है ? प्रश्न का तात्पर्य यह है कि सौगतमत में ज्ञान का संतान अथवा प्रवाह हो ज्ञाता कहा जाता है । इसलिये उसके प्रति प्रश्न है जो सजातीयज्ञान संवादी है वह क्या Bla एक संतान में अर्थात् एक ज्ञानप्रवाहरूप जीव में उत्पन्न हुआ है ? अथवा B1b भिन्न भिन्न ज्ञानसंतानरूप भिन्न भिन्न जीव में उत्पन्न हुआ है ? B1b यदि भिन्न संतानों में अर्थात् भिन्न जीवों में उत्पन्न होने वाले सजातीय ( सजातीय विषयक) ज्ञान को संवादी कहें तो यह पक्ष संगत नहीं है, क्योंकि अतिप्रसंग होगा अर्थात् अनिष्ट अर्थ की आपत्ति होगी । अतिप्रसंग इस प्रकार देवदत्त के घटज्ञान का संवादी यज्ञदत्तीय अन्य घट का ज्ञान भी हो जायगा । Bla यदि इस आपत्ति से बचने के लिये एक सन्तान में उत्पन्न होने वाले सजातीय ज्ञान को संवादी माना जाय तो यहाँ भी यह बताना जरूरी है कि वह संवादी ज्ञान क्या Blac प्रमाणरूप से स्वीकृत पूर्वकालीन विज्ञान से गृहीत अर्थ को विषय करता है ? Blad अथवा भिन्न अर्थ को विषय करता है ?
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( एकार्थविषय पक्ष में संवाय - संवादक भाव की अनुपपत्ति ]
Blac यदि आप कहें- वह सजातीय अन्यज्ञान पूर्वकालीन ज्ञान के अर्थ को ही विषय करता
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