SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०२ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १ तव, खरविषाणादेरपि तत्त्वप्रसंगादित्यादि आश्रयादावसिद्धत्वं हेतोः प्रतिपादयद्भिनिर्णीतमिति न पुनरुच्यते । सर्वथोत्पादक कारणव्यक्तिव्यतिरिक्तस्य क्षणमात्रस्थितेर्गुणत्वं न संभवति तत्संभवे च क्षणिकत्वं व्याहन्यते इति प्रतिपादयिष्यामः । द्वितीये तु विकल्पे 'न च धमिविशेषविपर्ययोद्धावनेन कस्यचिदपि रूपस्याऽभावः कथ्यते' इति यदुक्तम् , तदप्यसंगतम् , यतो यद्यन्यादृशस्य धर्मिणः कुतश्चिद्धतोः क्षित्यादौ सिद्धिः स्यात् तदा युज्येताऽपि वक्तुम्-'र्धामविशेषविपर्ययोद्धावनेन न कस्यचिद्धतुरूपस्याभाव' इति, तथाभूतस्य तु धर्मिणो न प्रकृतसाधनादवगम इति प्रतिपादितम् । अत एवागमाद् हेत्वन्तराद्वा न तत्र विशेषसिद्धिः, बुद्धिमत्कारणस्यैव धर्मिण: क्षित्यादिकर्तृत्वेनाऽसिद्धत्वात् । तत: 'तच्चाऽन्वय व्यतिरेकिपूर्व केवलव्यतिरेकिसंज्ञकं तदेव चाऽन्वयव्यतिरेकिलक्षणं पक्षधर्मताप्रसादाद् विशेषसाधनम्' इति प्रतिपादनं दुरापास्तम् , धर्म्यसिद्धौ तद्विशेषसिद्धेर्दू रोत्सारितत्वात् । अत एव 'य इत्थम्भूतस्य पृथिव्यादेः कर्ता नियमेनाऽसावकृत्रिमज्ञानसम्बन्धी शरीररहितः सर्वज्ञ एक इत्येवं यदा विशेषसिद्धिस्तदा न विशेष. विरुद्धानामवकाशः इति निःसारतया व्यवस्थितम्। गुणत्व की सिद्धि की जाय तो इससे कृतकत्व हेतु को कोई क्षति नहीं पहुंचती [ पृ. ३९६-३ ]यह बात गलत है। कारण, गुणत्व का स्वरूप है द्रव्याश्रितत्वादिधर्मवत्त्व। यदि वह शब्द में सिद्ध होगा तो कृतकत्व से साधित अनित्यत्व का व्याघात अवश्य होगा। वह इस रीति से-a अनुत्पन्न अनित्य गुण में तो उसके असत् होने के कारण ही वहाँ द्रव्याश्रितत्व या गुणत्व का समवाय होना शक्य नहीं है। b उत्पन्न पक्ष में शब्द अनित्य क्षणिक गुण रूप होने से उत्पत्ति के दूसरे क्षण में ही ध्वस्त हो जाने से गुणत्वादि का समवाय सम्भव नहीं है । यदि द्रव्याश्रितरूप से उसकी उत्पत्ति को ही द्रव्याश्रितत्व कहा जाय तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि गर्दभसींग आदि में भी द्रव्याश्रितत्व रूप से उत्पत्ति की आपत्ति होगी, क्योंकि उत्पत्ति के पूर्व अनुत्पन्न गुण और खरविषाण दोनों ही समान हैं.... इत्यादि यह बात, हेतु आश्रयादि में असिद्ध है इस बात के अवसर में निश्चित की गयी है अतः पुनरुक्ति नहीं करते हैं। तदुपरांत, उत्पादक कारण व्यक्ति से सर्वथा एकान्ते भिन्न क्षणमात्रस्थायी पदार्थ में गुणत्व ही नहीं घट सकता और गुणत्व मानने पर क्षणिकत्व का व्याघात कैसे होता है-यह बात आगे कहेंगे। [विशेषविपर्ययोद्धावन सार्थक नहीं है ] द्वितीय विकल्प में यह जो कहा था [ पृ. ३९६-५ ]-मि विशेष के विरुद्ध उद्भावन कर देने मात्र से हेतु के किसी आवश्यक रूपविशेष का अभाव प्रदर्शित नहीं हो जाता यह भी असंगत है। कारण, प्रसिद्ध व्यक्ति से भिन्न प्रकार का धर्मी कर्त्तारूप में यदि पृथ्वी आदि में सिद्ध होता तब तो ऐसा कहना ठीक था कि-'मि विशेष के विरुद्ध उद्भावन से हेतु के किसी रूप का अभाव फलित नहीं हो जाता।' किन्तु हमने यह दिखा दिया है कि सर्वज्ञत्वादिविशेष वाले धर्मी के बोध में प्रकृत कार्यत्व हेतु असमर्थ है । इसीलिये अन्य किसी हेतु से या आगम से भी ईश्वर की या उसके सर्वज्ञत्वादि विशेष धर्मों की सिद्धि दूर है, क्योंकि पृथ्वी आदि के कर्तारूप में बुद्धिमत्कारणस्वरूप धर्मी ही अप्रसिद्ध होने से वे भी कार्यत्व की तरह ही असमर्थ है। अब तो वह कथन भी-अन्वयव्यतिरेकिपूर्वक केवलव्यतिरेकीसंज्ञक प्रमाण से ईश्वर की सिद्धि और उसी अन्वयव्यतिरेकी प्रमाण से पक्षधर्मता के प्रभाव से सर्वज्ञत्वादिविशेषों की सिद्धि होगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy