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सम्मतिप्रकरण - नयकाण्ड १
अथ यत्र बाधकसद्भावस्तत्र प्राग्बाधकानुपलम्भेऽप्युत्तरकालमवश्यंभाविनी बाघकोपलब्धि: ; यत्र तु न कदाचिद् बाधकोपलब्धिस्तत्र न तद्भावः । असदेतत् न ह्यर्वाग्दृशा बाधकानुपलम्भमात्रेण 'न कदाचनाप्यत्र बाधकोपलब्धिर्भविष्यति' इति ज्ञातुं शक्यम्, स्वसम्बन्धिनोऽनुपलम्भस्यानैकान्तिकत्वात्, सर्वसम्बन्धिनोऽसिद्धत्वात् । न ह्यसर्ववित् 'सर्वेणाप्यत्र बाधकं नोपलभ्यते उपलप्स्यते वा' इत्यवसतु क्षम: । नाऽपि बाधकाभावोऽभावग्राहिप्रमाणावसेयः, तस्य निषिद्धत्वात् निषेत्स्यमानत्वाच्च । न चाऽज्ञातो बाधकाभावोऽनुमानाङ्गं पक्षधर्मत्वादिवत् । न च स्वसाध्याऽव्यभिचारित्वनिश्चयादेव बाधकाभावनिश्चयः, तन्निश्चयमन्तरेण त्वदभिप्रायेण स्वसाध्याऽव्यभिचारित्वस्यापरिसमाप्तत्वेन निश्चयाsयोगात् । तस्मात् पक्षधर्मत्वान्वयव्यतिरेक निश्चयलक्षणस्वसाध्याऽविनाभावित्वस्य प्रकृतानुमानेऽपि सद्भावात् प्रत्यक्षवद् न तस्यापि तदाभासत्वम् ।
अथ विपर्यये बाधकप्रमाणाभावात् पार्थिवत्वानुमानस्य नान्तर्व्याप्तिरिति तदभासत्वम्, एवं तहि कार्यत्वानुमानेऽपि विपर्यये बाधकप्रमाणाऽभावाद् व्याप्त्यभावतस्तदभासत्वमिति न व्यापकानुपलब्धिविषयबाधकता । अथ प्रत्यक्षं नानुमानेन बाध्यते इति लोह लेख्यत्वानुमानस्य न तद लेख्यत्वग्राहक प्रत्यक्षबाधकता, कथं तहि देशान्तरप्राप्तिलिङ्गजनिताऽनुमानेन स्थिरचन्द्रार्कग्राहिप्रत्यक्षबाधा ?
अनुमान में तदाभासता का निषेधक स्वसाध्याऽव्यभिचारिता कभी सिद्ध ही नहीं हो सकेगी, क्योंकि अनुमान की अबाधितविषयता का ग्रहण ही दुष्कर हो जाता है । यदि प्रत्यक्ष से उसकी बाधितविषयता है या नहीं यह देखने जाय तो अन्योन्याश्रय दोष होता है । 'वहाँ बाघ की अनुपलब्धि होने पर तो अबाधितविषयता हो सकेगी' यह नहीं कह सकते, क्योंकि केवल बाघ की अनुपलब्धि से बाधाभाव सिद्ध नहीं हो जाता । कारण, जहाँ बाधक का ज्ञान नहीं है वहाँ बाधक विद्यमान होने पर भी उसकी अनुपलब्धि हो सकती है ।
[ भावी बाधकानुपलम्भ का निश्चय अशक्य ]
पूर्वपक्षी:- जहाँ बाधक की सत्ता है वहाँ प्रारम्भ में बाधक का उपलम्भ न होने पर भी उत्तरकाल में कभी न कभी अवश्यमेव बाधक का उपलम्भ हो कर ही रहेगा । जहाँ, कभी भी बाधक का उपलम्भ न हो वहाँ समझ लेना कि बाधक है ही नहीं ।
उत्तरपक्षी:- य :- यह बात गलत है । जो वर्तमानमात्रदर्शी है उसके लिये यह निश्चय अशक्य है। कि यहाँ भावि में कभी भी बाधक उपलम्भ होने वाला नहीं। सिर्फ अपने को बाधक का उपलम्भ नहीं है इतने मात्र से तदभाव का निश्चय अनैकान्तिकदोषग्रस्त हो जायेगा और किसी को भी बाधक IT उपलम्भ नहीं होगा यह जान लेना हमारे लिये अशक्य होने से असिद्ध है । जो असर्वज्ञ है वह ऐसा कभी नहीं जान सकता कि इस स्थल में किसी को भी बाध का उपलम्भ नहीं है अथवा भावि में भी नहीं होगा । अभावग्राहक प्रमाण से भी बाधक के अभाव का निश्चय शक्य नहीं, क्योंकि मीमांसकसम्मत अभाव प्रमाण वास्तव में कोई प्रमाण ही नहीं है यह पहले कह चुके हैं [ पृ. १०४ ], अगले ग्रन्थ में भी कहा जायेगा । जब तक बाधाभाव का ज्ञान नहीं होगा तब तक वह अज्ञात बाधकाभाव अनुमान का अंग भी नहीं बन सकता, जैसे कि अज्ञात पक्षधर्मता से कभी पक्ष में साध्य का अनुमान नहीं होता । यह भी नहीं कह सकते कि अपने साध्य को अव्यभिचारिता के निश्चय से ही बाधक - भाव का निश्चय फलित होगा'- क्योंकि आपके पूर्वोक्त कथनानुसार बाधकाभाव का निश्चय हुए विना
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