________________
प्रथमखण्ड-का० १- ईश्वराकर्तृत्वे उत्तरपक्षः
४६६
क्रियाशिनोऽपि कृतबुद्धिमुत्पादयति, स एव बुद्धिमत्कारणकार्यत्वात् तदभावे भवन निर्हेतुकः स्यादिति वक्तु शक्यम् , न पुनः कार्यत्वमात्रं कारणमात्र हेतुकं बुद्धिमत्कारणाभावे भवनि हेतुकमासज्यते, तद्धि कारणमात्राऽभावे भवन निर्हेतुकं स्यात ।
न च कार्यविशेषः कर्तारमन्तरेण नोपलब्ध इति कार्यत्वमात्रमपि कर्तृ विशेषानुमापकमिति न्यायविका वस्तु युक्तम् , अन्यथा धूमविशेषस्तत्कालवह्नयव्यभिचरितो महानसादावुपलब्ध इति धूपघटिकादौ धूममात्रमपि तत्कालवह्नयनुमापकं स्यात् । अथ तत्र तत्कालवह्नयनुमाने तत: प्रत्यक्षविरोधः । स तहि भूरुहादावष्यकृष्ट जाते कनुमाने कार्यत्वलक्षणाद्धेतोः समानः । 'अथ तत्कर्तु रतीन्द्रियत्वाभ्युपगमाद न प्रत्यक्षविरोधः' । धूपघटिकादावपि वह्न रतीन्द्रियत्वाभ्युपगमे को दोषो येन प्रत्यक्षविरोध उद्भाव्येत ?
[ सहेतुकत्व के अतिक्रम की आपत्ति का प्रतिकार ] नैयायिक:-कार्य का जो लक्षण होता है-कारण के अन्वयव्यतिरेक का अनुविधान, वह धूम में अनुवर्तमान होने से धूम को अग्नि का कार्य माना जाता है, अत: यदि अग्नि के अभाव में भी वह रह जायेगा तो सहेतुकत्व का अतिक्रमण कर देगा, अर्थात् निहतुक हो जायेगा, (द्र. प्र०वा० ३-३४) इस कारण, अग्नि के विना धूम का सद्भाव नहीं माना जाता, अतः सर्वोपसंहार से व्यप्ति की सिद्धि धूम में होती है-उसी तरह पर्वतादि में भी कार्यधर्म यानी कारण के अन्वय व्यतिरेक का अनुविधान सिद्ध होने से पर्वतादि को बुद्धिमत्कारणजन्य मानना ही होगा, यदि बुद्धिमत्कारण के विना भी पर्वतादि कार्य निष्पन्न होगा तब निर्हेतुक ही बन जायेगा, इस प्रकार यहाँ भी सर्वोपसंहार से व्याप्ति की सिद्धि निर्बाध होती है।
उत्तरपक्षी:- बुद्धिमत्कारण के अन्वय-व्यतिरेक का अनुविधान जिस में दृष्ट है वैसे घटादि रूप जो कार्यविशेष, अपने से समान पदार्थों में उत्पत्तिक्रिया न देखने वाले को भी कृतबुद्धि उत्पन्न करता है. वही कार्यविशेष बद्धिमत्कारणजन्य होने से उसके लिये यह कहा जा सकता है कि बद्धिमत्कारण के अभाव में भी यदि वैसा कार्यविशेष उत्पन्न होगा तो निर्हेतुक हो जायेगा। कार्यत्वसामान्य तो केवल कारणसामान्यहेतुक ही होता है, अत: वहाँ यह नहीं कह सकते कि 'यदि वह बुद्धिमत्कारणजन्य नहीं होगा तो निर्हेतुक हो जायेगा'। केवल इतना ही यहाँ कहा जा सकता है कि यदि कारणसामान्य के विना कार्यसामान्य उत्पन्न होगा तो वह निर्हेतुक हो जायेगा।
[कार्यस्वसामान्य से कारण विशेष का अनुमान मिथ्या है ] न्यायवेत्ता कभी ऐसा नहीं कहेगा कि-'कर्त्तारूप विशेषकारण के विना कोई एक कार्यविशेष उपलब्ध नहीं होता इतने मात्र से कार्यत्वमात्र से भी कर्त विशेष का अनुमान किया जा सकता है।' यदि कार्यत्वमात्र से भी कर्तृ विशेष का अनुमान किया जा सकता तब तो पाकशालादि में तत्कालीन अग्नि से अविनाभूत धूमविशेष की उपलद्धि होती है तो इतने मात्र से धूमघटिका में धूमसामान्य से तत्कालीन (पाकशालागत) अग्नि का अनुमान प्रसक्त होगा।
नैयायिकः-धूपघटिका में पाकशालागत तत्कालीन अग्नि का अनुमान करने में प्रत्यक्षविरोध है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org