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________________ प्रथमखण्ड-का० १- परलोकवाद: तद्वदस्यापि । एतदचारु, तस्य हि क्षणिकतायां प्राक् प्रत्यक्षेण निश्चयात् निश्चयविषयेण च व्याप्तेदर्शनाद् विपक्षात् प्रच्यावितस्य बाधकप्रमाणेन साध्यधर्मिणि यदवस्थानं तदेव स्वसाध्येन व्याप्तिग्रहणम् । अत एवाऽस्य हेतोः साध्यधर्मिण्येव व्याप्तिनिश्वयमिच्छन्ति । 9 ननु व्याप्ति-साध्य निश्चययोनियमेन पौर्वापर्यमभ्युपगन्तव्यम्, व्याप्तिनिश्चयस्य साध्यप्रतिपत्यंगत्वात् अत्र तु साध्यर्धार्मणि व्याप्तिनिश्चयाभ्युपगमे साध्यप्रतिपत्तिकालोऽन्योऽभ्यु गन्तव्यः, न चासावन्योऽनुभूयते अस्त्येतत्कार्यहेतोः कस्यचित् स्वभावहेतोरपि अस्य तु बाधकात् प्रमाणाद्विपक्षात् प्रच्युतस्य यदेव साध्यधर्मिणि स्वसाध्यव्याप्ततया ग्रहणम् तदेव साध्यग्रहणम् । न चास्यैवं द्वैरूप्यम्, यतो विपक्षाद्वयावृत्तिरेवान्वयमाक्षिपति । ३७१ [ अन्यधर्मी में प्रतिसंधान की व्याप्ति के अग्रहण की शंका ] बौद्धवादी :- प्रतिसंधान हेतु से आप एककर्तृ कत्व सिद्ध करना चाहते हैं । हेतु में साध्यबोधकता अपने साध्य के साथ अविनाभाव यानी व्याप्ति गृहीत होने पर ही हो सकती है । व्याप्तिग्रह तो प्रसिद्ध किसी अन्य धर्मी में ही होता है, नहीं कि साध्यधर्मी में । जब प्रतिसंधान हेतु की एकसन्तानीय प्रतिभासरूप साध्यधर्मी से अन्य धर्मी में एककर्तृकत्व के साथ व्याप्ति ही दृष्ट नहीं है तो प्रतिसंधान हेतु से एकसन्तानीयप्रतिभासद्वय में एक कर्त्ता की अनुमिति कैसे हो सकेगी ? यदि शंका करें कि-'जैसे आपके मत में प्रत्येक वस्तु में क्षणिकत्व साध्य के साधक हेतु सत्त्व की व्याप्ति साध्यधर्मी से इतरधर्मी में अगृहीत होने पर भी सत्त्व हेतु से क्षणिकत्व सिद्ध किया जाता है वैसे प्रस्तुत में एकसन्तानीयप्रतिभासरूप साध्यधर्मी से अन्यत्र व्याप्ति गृहीत नहीं है तो भी साध्य सिद्ध हो सकता है ।' तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि हमारे मत में, व्याप्तिग्रहण के पूर्वकाल में ही निर्विकल्पक प्रत्यक्ष से क्षणिकत्व का निश्चय हुआ रहता है और व्याप्ति तो निश्चयविषयभूत पदार्थ के साथ ही देखी जाती है तो यहां निश्चयविषयभूतपदार्थ क्षणिकत्व का जो विपक्ष है अक्षणिक पदार्थ उसमें सत्त्व के रहने में बाधक प्रमाण विद्यमान होने से विपक्ष से निवर्तमान सत्त्वरूप हेतु केवल साध्यधर्मी क्षणिक में ही रह सकता है यह निर्णय जो होता है यही अपने साध्य के साथ व्याप्तिग्रहणरूप है । यहाँ व्याप्तिग्रह अन्यधर्मी में होना आवश्यक न होने से हमारे आचार्य सत्त्व हेतु की व्याप्ति का निश्चय साध्यधर्मी में ही होने का मान्य करते हैं । [ क्षणिकत्व व्याप्ति निश्चय की भी असिद्धि - समाधान ] जैनवादी :- व्याप्ति का निश्चय और साध्य की अनुमिति अवश्यमेव पूर्वापर भाव से होते हैं । यह तो किसी भी व्यक्ति को मानना पड़ेगा क्योंकि साध्य निश्चय में व्याप्ति का निश्चय अंगभूत यानी कारणभूत है । क्षणिकत्व सिद्धि स्थल में भी यदि आप साध्यधर्मी में ही व्याप्ति का निश्चय मानेंगे तो साध्य के निश्चय का काल उससे अन्य ही मानना होगा, किन्तु वह 'साध्य निश्चयकाल व्याप्ति के निश्चयकाल से अन्य है' ऐसा तो अनुभव होता नहीं है । हाँ, कार्यहेतुस्थल में और कोई कोई स्वभावहेतुस्थल में स्पष्टतया भिन्नकाल का अनुभव होता है इस लिये ऐसा नहीं कह सकते कि 'यहां भी व्याप्ति निश्चय है और साध्यनिश्चय भिन्नकाल में ही होता है केवल शीघ्रता के कारण ही अनुभव नहीं होता ।' यहाँ तो बाधक प्रमाण के द्वारा विपक्ष से व्यावृत्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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