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सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १
तदेवं सर्वज्ञसद्भावग्राहकस्य प्रमाणस्य ज्ञत्व-प्रमेयत्व-वचनविशेषत्वादेर्दशितत्वात तदभावप्रसाधकस्य च निरस्तत्वात् “ये बाधकप्रमाणगोचरतामापन्नास्ते 'असत्' इति व्यवहर्तव्याः" इति प्रयोगे हेतोरसिद्धत्वात् , ये सुनिश्चिताऽसंभवद्बाधकप्रमाणत्वे सति सदुपलम्भकप्रमाणगोचरास्ते 'सत्' इति व्यवहत्तव्याः, यथोभयवाधप्रतिपत्तिविषया घटादयः, तथाभूतश्च सर्वविद् इति भवत्यतः प्रमाणात् सर्वज्ञव्यवहारप्रवृत्तिरिति।
___ अथापि स्यात्-स्वविषयाविसंवादिवचनविशेषस्य तद्विषयाविसंवादिज्ञानपूर्वकत्वमात्रमेव भवता प्रसाधितम्, न चैतावताऽनन्तार्थसाक्षात्कारिज्ञानवान् सर्वज्ञः सिद्धि मासादयति, सकलसूक्ष्मादिपदार्थसार्थसाक्षात्कारिज्ञान विशेषपूर्वकत्वे हि वचनविशेषस्य सिद्ध तज्ज्ञानवतः सर्वज्ञत्वसिद्धिः स्यात् । न च तथाभूतज्ञानपूर्वकत्वं वचनविशेषस्य सिद्धम् , अनुमानादिज्ञानादपि स्वविषयाऽविसंवादिवचनविशेषस्य संभवात् , न च तथाभूतज्ञानवान् सर्वज्ञो भवद्भिरभ्युपगम्यत इत्येतद् हृदि कृत्वाऽऽह सूरि: 'कुसमयविसासणं' इति । सम्यक्-प्रमाणान्तराविसंवादित्वेन ईयन्ते-परिच्छिन्ते-इति समया:-नष्ट - मुष्टि-चिन्तालाभाऽलाभ-सुखाऽसुख-जीवित-मरण-ग्रहोपराग-मन्त्रौषधशक्त्यादय: पदार्थाः, तेषां विविधम् अन्य. पदार्थकारणत्वेन कार्यत्वेन चानेकप्रकारं शासनं प्रतिपादकम् यतः शासनम् कु: पृथ्वी तस्या इव ।
ऐसा तो उस काल में भी असर्वज्ञजन नहीं पीछान सकते ।"....इत्यादि, वह भी असंगत है । कारण, व्यवहारी पुरुष स्वयं सकलशास्त्रार्थ का परिज्ञाता न होने पर भी किसी पंडितपुरुष को "यह सकल शास्त्र का ज्ञाता है" इस रूप में पिछानता ही है । तो सर्व पदार्थ का ज्ञान न होने पर भी यदि कोई किसी के लिये 'यह सर्वज्ञ है' इस प्रकार निश्चय कर सकता है - इसमें विरोध क्या है ? विरोध की बात तो दूर, बल्कि यही युक्तियुक्त है। अन्यथा आप मीमांसकों को यह समस्या होगी कि जो स्वयं सकल वेदार्थ का ज्ञाता नहीं है तो जैमिनि ऋषि या अन्य किसी को 'यह सर्ववेदार्थज्ञाता है' इसरूप में आप कैसे निश्चय कर सकोगे ? और इस निश्चय के अभाव में, जैमिनि आदि के व्याख्या किये हुये वेदार्थ का अनुसरण करने द्वारा अग्निहोत्रादि अनुष्ठान में कैसे प्रवृत्ति करोगे ? इसलिये "सर्वज्ञोऽयमिति ह्य तत्' इत्यादि श्लोकवात्तिक [ २-१३४/१३५ ] श्लोक [पृ० २१८] को प्रस्तुत कर आपने जो कुछ कहा है वह सब महत्त्वशून्य है।
[ सर्वज्ञव्यवहारप्रवृत्ति प्रमाणभूत है ] उपरोक्त संपूर्ण चर्चा के द्वारा ज्ञत्व, प्रमेयत्व और वचनविशेषत्व हेतु प्रयुक्त अनुमान प्रमाण सर्वज्ञ सद्भाव साधक यह दिखाया है, तदुपरांत सर्वज्ञअभाव के जो साधक प्रमाण पूर्वपक्षी ने उपन्यस्त किये थे वह भी सब निरस्त कर दिया है, तथा यह जो अनुमान प्रयोग किया था- 'बाधकप्रमाणगोचरता को प्राप्त जो पदार्थ हैं उनका 'असत्' रूप से व्यवहार करना'-इस प्रयोग में बाधकप्रमाणगोचरत्व हेतु असिद्ध है यह भी दिखाया है। अत: हम जो यह प्रमाण उपस्थित कर रहे हैं"जिन के बारे में कोई सुनिश्चित बाधक प्रमाण का संभव नहीं है और जो सत् पदार्थ साधक प्रमाण के विषय विषय हैं उनका 'सत्' रूप से व्यवहार होना चाहिये, जैसे कि वादि-प्रतिवादी दोनों सम्मत पदार्थ घटादि । सर्वज्ञ भी 'सत्' पदार्थ साधक प्रमाण का विषय है और उसकी सत्ता में कोई सुनिश्चित बाधक प्रमाण का संभव नहीं है"-इस अनुमान प्रमाण से सर्वज्ञ के व्यवहार की प्रवृत्ति निर्बाध सम्पन्न होती है।
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