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________________ २०४ सम्मतिप्रकरण - नयकाण्ड १ तथाभूतानुपलम्भात् तदभावावगमः । ननु तथाभूतपुरुषाभावे तदनुपलम्भसंभवः, तत्संभवाच्च तथाभूतपुरुषा भावसिद्धिरितीतरेतराश्रयत्वाद् न सर्वम्बन्धिनोऽनुपलम्भस्य संभवः, संभवेऽपि तस्याऽसिद्धेर्न विपर्यये विरोधसाधकत्वम् । अथात्मसम्बन्धिनोऽनुपलम्भस्य धूमत्वलक्षण हेतोर्विपक्षाद् व्यावृत्तिसाधकत्वम् । न तस्य परचेतोवृत्तिविशेषेरनैकान्तिकत्वात् । अथानुपलम्भव्यतिरिक्तं धूमलक्षणस्य हतोविपर्यये बाधकं प्रमाणमस्ति, न तु वक्तृत्वलक्षणस्य । किं पुनस्तदिति वक्तव्यम् ? 'अग्नि-धूमयोः कार्यकारणभावलक्षणप्रतिबन्धग्राहकमिति चेत् ? कः पुनरसौ कार्यकारणभाव:, कि वा तद्ग्राहक प्रमाणम् ? 'अग्निभावे एव धूमस्य भावस्तदभावे चाभाव एवासौ तद्ग्राहकं च प्रमाणं प्रत्यक्षानुपलम्भस्वभावम् । ननु किचिज्ज्ञत्वस्य तद्व्यापकस्य वा रागादिमत्त्वस्य भावे एव वक्तृत्वस्य भावः स्वात्मन्येव दृष्टः, तदभावे चाभाव एवोपलादावविज्ञानेनानुपलम्भतो ज्ञात इति कथं न विपर्यये सर्वज्ञत्वे वीतरागत्वे वा वषतृत्वलक्षणस्य हेतोर्बाधिकं कार्यकारणभावलक्षणप्रतिबन्धग्राहकं प्रत्यक्षानुपलम्भाख्यं प्रमाणं दर्शनाऽदर्शनशब्द वाच्यं युक्तम् ? न च दर्शनाऽदर्शनशब्दवाच्यस्यास्मदभ्युपगतप्रमाणस्य प्रत्यक्षानुपलम्भशब्द वाच्यस्थ वाभवदभिप्रेतस्य कश्चिद्विशेषः प्रकृतहेतुसाध्यप्रतिबन्धसाधन उपलभ्यते । को विपक्ष में धूम की उपलब्धि न होने का संभव नहीं है । यदि विपक्ष में धूम को उपलब्ध करने वाले पुरुष का अभाव होने से सभी को विपक्ष में अनुपलब्धि का सम्भव है - ऐसा कहा जाय तो यह प्रश्न है कि विपक्ष में घूमसत्ता के ग्राहक पुरुष का अभाव आपको किस प्रमाण से उपलब्ध हुआ ? यदि अन्य किसी प्रमाण से उपलब्ध हुआ हो तब तो उसी प्रमाण से विपक्ष में धूमनिवृत्ति भी सिद्ध हो जाने से, विपक्ष में धूमविरोध का साधक, सर्वसम्बन्धी अनुपलम्भस्वरूपप्रमाण का उपन्यास व्यर्थ है । यदि कहें कि-सर्वसम्बन्धी अनुपलम्भ से ही विपक्ष में धूमसत्ता ग्राहक पुरुष का अभाव ज्ञात किया - तो इसमें अन्योन्याश्रय दोष इस प्रकार लगेगा- विपक्ष में घूमसत्ता ग्राहक पुरुषाभाव से सर्वसम्बन्धी अनुपलम्भ की सिद्धि होगी और सर्वसम्बन्धी अनुपलम्भ सिद्ध होने पर वैसे पुरुषाभाव की सिद्धि होगी । इस दोष के कारण सर्वसम्बन्धी अनुपलम्भ का कोई संभव नहीं है । दूसरी बात यह है कि किसी प्रकार संभव मान ले, तो भी उसकी किसी प्रमाण से सिद्धि जब तक न की जाय तब तक विपक्ष में केवल संभवमात्र से सर्व संबधी अनुपलब्धि विरोध की साधक नहीं बन सकती । [ आत्मीय अनुपलम्भ से घूम की विपक्ष व्यावृत्ति असिद्ध ] सर्वसंबन्धी अनुपलम्भ पक्ष को छोड़ कर आप यदि यह कहें कि 'आत्मसंबंधी अनुपलम्भ यानी आपको उपलम्भ न होने के कारण धूम हेतु की विपक्ष से व्यावृत्ति सिद्ध की जायेगी ।' तो यह ठीक नहीं है क्योकि परचित्तवृत्तिविशेष से यहाँ व्यभिचार दोष लगेगा। तात्पर्य, आपको तो परकीय चित्तवृत्ति का भी कभी उपलम्भ नहीं होता कितु इस अनुपलम्भ से उसकी व्यावृत्ति सिद्ध नहीं होती है । यदि अनुपलम्भ को छोड़ कर विपक्ष में धूमात्मक हेतु की सत्ता में बाधक दूसरा कोई प्रमाण विद्यमान है किंतु वक्तृत्व हेतु के लिये वह नहीं है ऐसा कहा जाय तो वह कौन सा प्रमाण है यह आपको बोलना चाहिये । यदि अग्नि और धूम के बीच कार्य कारणभावात्मक सम्बन्ध ग्रहण कराने वाला प्रमाण ही विपक्ष बाधक होने का कहा जाय तो यह दिखाईये कि उस कार्य कारणभाव का क्या स्वरूप है और किस प्रमाण से वह गृहीत होता है ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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