SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १ कि च, सदुपलम्भकप्रमाणपंचकनिवृत्तिनिबन्धनाऽस्य प्रवृत्तिरभ्युपगम्यते भवता, "प्रमाणपंचकं यत्र"...[ श्लो० वा० सू० ५-अभाव० श्लो० १] इत्याभिधानात् । न च प्रमाणपंचकस्य वेदे पुरुषसद्भावावेदकस्य निवृत्तिः, नररचितरचनाऽविशिष्टत्वस्य पौरुष्णेयत्वप्रतिपादकत्वेनाऽनुमानस्य प्रति चाऽस्याऽप्रामाण्यमभिधात शक्यमा यतोऽस्याऽप्रामाण्यं कि अभावप्रमाणबाधितत्वेन ? उत b स्वसाध्याविनाभावित्वाभावेन ? तत्र न a तावदभावप्रमाणबाधितत्वेन, चक्रकदोषप्रसंगात् । तथाहि-न यावदभावप्रमाणप्रवृत्तिर्न तावत् प्रस्तुतानुमानबाधा, यावच्च न बाधा न तावत्सदुपलम्भकप्रमाणनिवृत्तिः, यावच्च न तस्य निवृत्तिन तावत् तन्निबन्धना प्रभावाख्यप्रमाणप्रवृत्तिः, तदप्रवृत्तौ च नानुमानबाधेति दुरुत्तरं चक्रकम् । तन्नाभावप्रमाणबाधितत्वात्प्रस्तुतानुमानस्याऽप्रामाण्यम्। ____ न चाऽबाधितत्वमनुमानप्रामाण्यनिबन्धनम,- तथाऽभ्युपगमे तस्य प्रामाप्यमेव न स्यात् , तस्य निश्चेतुमशक्यत्वात् । तथाहि-बाधाऽभावो नाऽनुपलम्भान्निश्चीयते, विद्यमानबाधकेष्वपि बाधानुपलम्भस्य भावात् । नाऽपि बाधकामावज्ञानात् , यतस्तदपि ज्ञानं यदि तदैव बाधकाभावं निश्चाययति तदा न तत् प्रामाण्यनिबन्धनम् , तथाभूतज्ञानस्य संभवद्बाधकेष्वपि भावात् । अथ सर्वदा तद्बाधकामावं [ अपौरुषेयत्व में अभावप्रमाण का असंभव ] यह भी सोचिए कि-आप अभावप्रमाण की प्रवृत्ति तभी मानते हैं जब सत्पदाथ-उपलम्भक प्रत्यक्षादि पाँचो प्रमाण का निवर्तन हो, आपने ही कहा है-"जहाँ प्रमाणपंचक प्रवृत्त नहीं होते......." इत्यादि । तो प्रस्तुत में वेदरचयिता पुरुष का साधक नररचितरचनाऽविशिष्टत्व हेतुक अनुमान हमने दिखा दिया है इसलिये वेद में पुरुषसद्भावसाधक प्रमाणपंचक की निवृत्ति नहीं है । हमारा यह अनुमान अप्रमाण नहीं कह सकते । किसलिये आप उसको अप्रमाण कहेंगे A क्या अभावप्रमाण से बाधित होने के कारण ? अथवा तो B हेतु अपने साध्य का अविनाभावि न होने के कारण ? A अभाव प्रमाण से बाधित होने की बात मिथ्या है क्योंकि उसमें चक्रक दोष है। जैसे कि चक्रक दोष इस प्रकार है-जब लग अभावप्रमाण प्रवृत्त न होगा तब लग हमारे प्रस्तुत अनुमान में बाध न होगा। जब लग वह अबाधित है तब लग सदुपलम्भकप्रमाण की निवृत्ति नहीं कह सकते । जब लग वह अनिवृत्त है तब लग प्रमाणपंचक निवृत्तिमूलक अभावप्रमाणप्रवृत्ति को अवकाश नहीं है । अभावप्रमाण की प्रवृत्ति निरवकाश होने से हमारे प्रस्तुत अनुमान को कोई बाधा नहीं होगी। इस प्रकार चक्रक का प्रसर दुनिवार है। अतः ‘अभावप्रमाण से बाधित होने के कारण हमारा प्रस्तुत अनुमान 'अप्रमाण प्रमाण है' यह नहीं कहा जा सकता। [अबाधितत्व अनुमान के प्रामाण्य का मूल नहीं है ] यह भी ध्यान देने योग्य है कि अभावप्रमाण का बाध दोषरूप तभी हो सकता यदि अनुमान का प्रामाण्य अबाधितत्व के ऊपर अवलम्बित होता, किंतु ऐसा नहीं है, कारण, अबाधितत्व को अनुमान में प्रामाण्य का प्रयोजक कहने पर, कोई भी अनुमान प्रमाण न हो सकेगा क्योंकि बाधाभाव का निश्चय ही अशक्य है। जैसे बाध का अनुपलम्भ बाधाभाव का निश्चायक नहीं हो सकता, क्योंकि बाधक की विद्यमानता में भी बाध का अनुपलम्भ हो सकता है किन्तु 'इतने मात्र से बाधाभाव का निश्चय हो जाता है' यह कहना कठिन है । बाधक के अभावज्ञान से बाधाभाव का निश्चय भी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy