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इच्छाकामं च लोभं च , संजओ परिवज्जए ।। [१४४७] मनोहरं चित्तघरं , मल्लधूवेण वासियं ।
सकवाडं पं डुरुल्लोयं, मनसा वि न पत्थए ।। [१४४८] इंदियाणि उ भिक्खुस्स , तारिसंमि उव्वस्सए |
दुक्कराई निवारेउं , कामरागविवड्ढणे ।। [१४४९] सुसाणे सुन्नगारे वा , रुक्खमूले व इक्कओ ।
पइरिक्के परकडे वा , वासं तत्थ ऽभिरोयए ।। [१४५०] फासुयंमि अ नाबाहे, इत्थीहिं अ नभिक्षुए ।
तत्थ संकप्पए वासं , भिक्खू परमसंजए ।। [१४५१] न सयं गिहाई कुव्विज्जा , नेव अन्नेहिं कारए |
गिहकम्मसमारंभे, भूयाणं दिस्सए वहो ।। [१४५२] तसाणं थावराणं च , सुहमाणं बादराण य ।
तम्हा गिहसमारं भं, संजओ परिवज्जए || [१४५३] तहेव भत्तपा नेसु, पयणे पयावणेसु य ।
पाणभूयदयढाए, न पए न पयावए || [१४५४] जलधन्ननिस्सिया जीवा , पुढवीकट्ठनिस्सिया ।
हम्मति भत्तपा नेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए ||
अज्झयणं-३५
[१४५५] विसप्पे सव्वओ धारे , बहुपाण विनासणे ।
नत्थि जोइसमे सत्थे , तम्हा जोइं न दीवए ।। [१४५६] हिरण्णं जायरूवं च , मनसा वि न पत्थए ।
विरए कयविक्कए || [१४५७] किणंतो कइओ होइ , विक्किणंतो य वाणिओ |
कयविक्कयंमि वढें तो, भिक्खू न भवइ तारिसो ।। [१४५८] भिक्खियव्वं न केयव्वं , भिक्खुणा भिक्खुवित्तिणा ।
कयविक्कओ महादोसो , भिक्खवित्ती सुहावहा ।। [१४५९] समुयाणं उंछमेसिज्जा , जहासुत्तमनिंदियं ।
लाभालाभंमि संतुढे , पिंडवायं चरे म् नी ।। [१४६०] अलोले न रसे गिद्धे , जिब्भादंते अमु च्छिए |
न रसट्ठाए भुंजिज्जा , जवणट्ठाए महामु नी ।। [१४६१] अच्चणं रयणं चेव , वंदनं पूयणं तहा ।
इड्ढीसक्कारसम्माणं, मनसा वि न पत्थए ।। [१४६२] सुक्कं ज्झाणं झियाएज्जा , अनियाणे अकिंच ने |
वोसट्ठकाए विहरेज्जा , जाव कालस्स पज्जओ ।। [१४६३] निज्जूहिऊणं आहारं , कालधम्मे उव ट्ठिए |
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४३-उत्तरज्झयण]