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________________ अज्झयणं-२ नत्थ जीवस्स नात्ति [७७] दुक्करं खलु भो ! निच्च [७८] गोयरग्गपविट्ठस्स, सेओ अगारवासुत्ति [७९] परेसु घासमेसेज्जा लद्धे पिण्डे अलद्धे वा अज्जेवाहं न लब्भामि जो एवं पडिसंचिक्खे [८१] नच्चा उप्पइयं दुक्खं [co] एवं पेहेज्ज संजए || अनगार भिक्खु सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं || हत्थे नो सुप्पसारए [८४] [८२] तेगिच्छं नाभिनंदेज्जा एवं खु तस्स सामण्णं [८३] अचेलगस्स लूहस्स एवं नच्चा न सेवंति [ ८५] किलिन्नगाए मेहावी घिसु वा परियावेणं [८६] वेएज्ज निज्जरापेही जाव सरीरभेउत्ति तणे सुयमाणस्स आयवस्स निवारणं अदीनो ठावए पन्नं, [२] [८९] से नूनं मए पुव्वं जेणाहं नाभिजाणामि [९३] [ दीपरत्नसागर संशोधितः ] 3 [८७] अभिवायणं अब्भुट्ठाणं, जे ताइं पडिसेवं ति, [८८] अणुक्कसाई अप्पिच्छे [ ९९ ] निरट्ठगंमि विरओ " 3 9 रसेसु ना नुगिज्झेज्जा, नत्थि नू " 3 [१०] अह पच्छा उइज्जं ति, एवमस्सासि अप्पाणं 3 जो सक्खं नाभिजाणामि तवोवहाणमादाय, एवं पि विहरओ मे नं परे " लोए, " " 3 " " " " इइ भिक्खु न चिंतए || भोयणे परि नातप्पेज्ज पंडिए || निट्ठिए अवि लाभो सुए सिया | अलाभो तं न तज्जए || I " [8] पुट्ठो तत्थहियास || संचिक्खऽत्तगवेसए जं न कुज्जा न कारवे ।। ,संजयस्स तविस्सणो हुजा गायविराहा ।। अउला हवइ वेयणा तंतुजं तणतज्जिया ।। I I ॥ इड्ढी वाऽवी तवस्सिणो I पंकेण व रएण वा सायं नो परिदेव || आरियं धम्म ऽनुत्तरं जल्लं कारण धारए || सामी कुज्जा मंत सिंह अन्नाएसी अलोलु प्पे कम्माऽनाणफला कडा नवं ।। पुट्ठो केइ कण्हुई ।। कम्माऽनाणफला कडा नच्चा कम्मविवागयं || मेहुणाओ संवुडो | धम्मं कल्ला ण पावगं ।। पडिमं पडिवज्जओ I I I I I I | I | | छमं न निय ट्टई ।। I [४३-उत्तरज्झयणं]
SR No.003785
Book TitleAgam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages112
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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