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[१२९९] गंधानुगासानुगए य जीवे , चराचरे हिंसइs नेगरुवे ।
चित्तेहि ते परितावेइ बाले , पीलेइ अत्तद्वगुरु किलिट्टे ।। [१३००] गंधाणुवाएण परिग्गहेण , उप्पायणे रक्खणसन्निओगे |
वए विओगे य कहं सुहं से , संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। [१३०१] गंधे अतित्ते य परिग्गहं मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तु हिं ।
अतुढिदोसेण दुही परस्स , लोभाविले आययई अदत्तं ।। [१३०२] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो , गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य ।
मायामुसं व ड्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। [१३०३] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य , पओगकाले य दुही दुरं ते ।
एवं अदत्ताणि समाययं तो, गंधे अतित्तो दुहिओ अ निस्सो ।। [१३०४] गंधानुरत्तस्स नरस्स एवं , कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ।
तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं , निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। [१३०५] एमेव गं धंमि गओ पओसं , उवेइ दुक्खोहपरंपराओ |
पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं , जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।।
[१३०६] गंधे विरत्तो म नुओ विसोगो , एएण दुक्खोहपरंपरेण | अज्झयणं-३२
न लिप्पई भवमज्झे वि सं तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ।। [१३०७] जिहाए रसं गहणं वयंति , तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु ।
तं दोसहेउं अमणुन्न माहु, समो य जो तेसु य वीयरागो ।। [१३०८] रसस्स जिब्भं गहणं वयंति , जिब्भाए रसं गहणं वयंति |
रागस्स हेउं समणुन्नमाहु , दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। [१३०९] रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं , अकालियं पावइ से वि नासं |
रागाउरे बडिसविभिन्नकाए , मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ।। [१३१०] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं , तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं ।
दुइंतदोसेण सएण जं तू, न किंचि रसं अवरज्झई से ।। [१३११] एगंतरत्ते रुइरंसि रसे , अतालिसे से कुणई पओसं |
दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले , न लिप्पई तेण मु नी विरागो ।। [१३१२] रसान्गासानगए य जीवे , चराचरे हिंसइ नेगरुवे |
चित्तेहि ते परितावेइ बाले , पीलेइ अत्त द्वगुरु किलि द्वे ।। [१३१३] रसानुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे |
वए विओगे य कहं सुहं से , संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। [१३१४] रसे अतित्ते य परिग्गहं मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि ।
अतुढिदोसेण दुही परस्स , लोभाविले आययई अदत्तं ।। [१३१५] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो , रसे अतित्तस्स परिग्गहे य |
___ मायामसं व ड्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ||
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४३-उत्तरज्झयणं]