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भवकाय-द्वितीए हिंडते सव्वजोणीसु गोयमा
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अज्झयणं-२, उद्देसो-३
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[३२४] चिट्ठति संसरेमाणे जम्म-जर-मरण-बहु-वाहि वेयणा-रोग-सोग-दारिद्द-कलह-ब्भक्खाणंसंताव-गब्भवासादि-दुक्खसंधुक्किए तप्पुव्वसल्ल-दोसेणं निच्चाणंद-महूसव-थाम-जोग-अट्ठारस -सीलंग-सहस्साहिट्ठियस्स सव्वासुह-पावकम्मट्ठ-रासि-निद्दहण-अहिंसा-लक्खण-समण-धम्मस्स बोहिं नो पाविति ते ।
[३२५] अज्झवसाय-विसेसं तं पडुच्चा केई तारिसं
पोग्गल-परियट्टलक्खेसु बोहिं कह कह वि पावए [३२६] एवं सुदुल्लहं बोहिं सव्व-दुक्ख-खयं करं
लक्ष्णं जे पमाएज्जा तयत्तं सो पुणो वए [३२७] तास् तास् च जोणी पव्वत्तेण कमेण उ
पंथेणं तेणई चेव दुक्खे ते चेव अनुभवे [३२८] एवं भव-काय-द्वितीए सव्व-भावेहिं पोग्गले
सव्वे सपज्जवे लोए सव्व वण्णंतरेहि य [३२९] गंधत्ताए रसत्ताए फासत्ताए संठाणत्ताए
परिणामित्ता सरीरेणं बोहिं पावेज्ज वा न वा [३३०] एवं वय-नियम-भंग जे कज्जमाणम्वेक्खए
अह सीलं खंडिज्जंतं अहवा संजम-विराहणं [३३१] उम्मग्ग-पवत्तणं वा वि उसत्तायरणं पि वा
सो वि य अनंतरुत्तेणं कमेणं चउगई भमे [३३२] रुसउ तुसउ परो मा वा विसं वा परियत्तउ
भासियव्वा हिया भासा सपक्ख-गुणकारिया [३३३] एवं लद्धामवि बोहिं जइ णं नो भवइ निम्मला
ता संवुडासव-दारे पगति-ट्ठिय-पएसानुभावियबंधो । नो हासो नो य निज्जरे [३३४] एमादी-धोर-कम्मट्ठजालेणं कसियाण भो
सव्वेसिमवि सत्ताणं कुओ दुक्ख-विमोयणं [३३५]
पडिकंताणं नियय-कम्माणं न अवेइयाण मोक्खो घोरतवेण अज्झोसियाण वा |
[३३६] अनुसमयं बज्झए कम्म नत्थि अबंधो उ पाणिणो
मोत्तुं सिद्धे अजोगी य सेलेसी संठिए तहा [३३७] सुहं सुहज्झवसाएणं असुहं दुट्ठज्झवसायओ
तिव्वयरेणं तु तिव्वयरं मंदं मंदेण संचिणे [३३८] सव्वेसिं पावकम्माणं एगीभूयाणं जेत्तियं रासिं भवे तमसंखगुणं वय-तव-संजमचारित्तखंडण-विराहणेणं उस्सुत्तम्मग्ग-पन्नवण-पवत्तण-आयरणोवेक्खणेण य समज्जिणे |
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[दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह