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नवरं सुवियारियं काउं तित्थयरा सयमेव य । भणंति तं तहा चेव गोयमा
__ ! समणुट्ठए || [१३६२] अत्थेगे गोयमा ! पाणी जे पव्वज्जिय जहा तहा |
अविहीए तह चरे धम्मं जह संसारा न मुच्चए ।। [१३६३] से भयवं ! कयरे णं से विही-सिलोगो ? गोयमा ! | इमे णं से विहि-सिलोगो तं जहाचिइ-वंदन-पडिक्कमणं जीवाजीवाइ-तत्त-सब्भावं । समि-इंदिय-दम-गुत्ति कसाय-निग्गहणमुवओगं ।। [१३६४] नाऊण सुवीसत्थो सामायारिं किया-कलावं च |
आलोइय-नीसल्लो आगब्भा परम-संविग्गो ।। [१३६५] जम्म-जर-मरण-भीओ चउ-गइ संसार-कम्म-दहणट्ठा ।
पइदियहं हियएणं एयं अनवरय-झायंतो || [१३६६] जरमरण-मयर-पउरे रोग-किलेसाइ-बहविह-तरंगे |
कम्मट्ठ-कसाय-गाह-गहिर-भव-जलहि मज्झम्मि ।। [१३६७] भमिहामि भट्ठ-सम्मत्त-नाण-चारित्त-लद्ध-वरपोओ |
कालं अनोर-पारं अंतं दुक्खाणमलंभतो || [१३६८] ता कइया सो दियहो जत्था-हं सत्तु-मित्त-सम-पक्खो ।
नीसंगो विहरिस्सं सुह-झाण-नीरंतरो पुणोऽभवटुं [१३६९] एवं चिर-चिंतियाभिमुह-मनोरहोरु-संपत्ति-हरिस-समुल्लसिओ |
भत्ति-भर-निब्भरोणय रोमंच-उक्कंच प्लय-अंगो ।। [१३७०] सीलंग-सहस्स अट्ठारसण्ह धरणे समोत्थय-क्खंधो ।
छत्तीसायारुक्कंठ निद्वियासेस-मिच्छत्तो ।। [१३७१] पडिवज्जे पव्वज्ज विमुक्क-मय-मान-मच्छरामरिसो । निम्मम-निरहंकारो विहिणेवं गोयमा ! विहरे ।। [१३७२] विहग इवापडिबद्धो उज्जुत्तो नाणं-दंसण-चरित्ते ।
नीसंगो घोर-परीसहोवसग्गाइं पजिणंतो ।।
[१३७३] उग्गाभिग्गह-पडिमाइ राग-दोसेहिं दूरतर मुक्को । अज्झयणं-७ / चूलिका-१
रोद्दट्टज्झाण-विवज्जिओ य विगहासु य असत्तो ।। [१३७४] जो चंदनेन बाहुं आलिंपइ वासिणा व जो तच्छे ।
संथुणइ जो अ निंदइ सम-भावो हज्ज दुण्हं पि ।।
[१३७५] एवं अनिगूहिय बल-विरिय-पुरिसक्कार-परक्कमो, सम-तण-मणि-लहु-कंचणोवेक्को, परिचत्त-कलत्त-पुत्त-सुहि-सयण-मित्त-बंधव, धन-धन्न-सुवण्ण-हिरण्ण-मणी-रयण-सार-भंडारो, अच्चंतपरम-वेरग्ग-वासनाजनिय-पवर, सुहज्झवसाय-परम-धम्म-सद्धा-परो, अकिलिट्ठ-निक्कलुस-अदीन-मानसो य
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह