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[१२८०] कत्थइ कहिंचि कालेणं लक्खं कोडिं च मेलिउँ ।
जइ एगिच्छा मई पुन्ना बीया नो संपज्जए ।। [१२८१] एरिसयं दुल्ललियत्तं सुकुमालत्तं च गोयमा
धम्मारंभंमि संपडइ कम्मारंभे न संपडे || [१२८२] जेणं जस्स मुहे कवलं गंडी अन्नेहिं धेज्जए |
भूमीए न ठवए पायं इत्थी-लक्खेसु कीडए ।। [१२८३] तस्सा वि णं भवे इच्छा अन्नं सोऊण सारियं ।
समोठ्ठहामि तं देसं अह सो आणं पडिच्छओ ।। [१२८४] साम-भेय-पयाणाइं अह सो सहसा पउंजिउं ।
तस्स साहस-तुलणट्ठा गूढ-चरिएण वच्चइ ।। [१२८५] एगागी कप्पडा-बीओ दुग्गारण्णं गिरी-सरी ।
लंघित्ता बहु-कालेणं दुक्खदुक्खं पत्तो तहिं ।। [१२८६] दुक्खं खु-खाम-कंठो सो जा भमडे धराधरिं ।
जायंतो छिद्द-मम्माइं तत्थ जइ कह वि न नज्जए ।। [१२८७] ता जीवंतो न चुक्केज्जा अह पुणेहिं समुच्चरे । तओ णं परवत्तियं देहं तारिसो स-गिहे वि से ।। [१२८८] को तंमि परियणो मन्ने ताहे सो असि-नाण नियचरियं पायडेऊणं जुज्ज-सज्जो भवेऊणं ।। [१२८९] सव्व-बला थोभेणं खंड खंडेण जुज्झिउं |
अह तं नरिदं निज्जिणइ अह वा तेण पराजियए || [१२९०] बहु पहारगलंत-रुहिरंगो गय-तुरया उद्ध-अहो मुहो ।
निवडइ रणभूमीए गोयमा ! सो जया तया ।। [१२९१] तं तस्स दुल्ललीयत्तं सुकुमालत्तं कहिं वए
जे केवलं पि स-हत्थेणं अहो-भागं च धोविउं ।। [१२९२] नेच्छंतो पायं ठविउं भूमीए न कयाइ वि ।
एरिसो वी स दुल्ललिओ एयावत्थं अ वी गओ ।। [१२९३] जइ भण्णे धम्म चेटे ता पडिभणइ न सक्किमो |
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अज्झयणं-६, उद्देसो
ता गोयम ! अहन्नानं पाव कम्माण पाणिणं ।। [१२९४] धम्म-हाणंमि मइ न कयाइ वि भविस्सए |
एएसिं इमो धम्मो एक्क-जम्मी न भासए ।। [१२९५] जहा खंत-पियंताणं सव्वं अम्हाण होहिर्ड |
ता जो जं इच्छे तं तस्स जइ अनुकूलं पवेइए || [१२९६] तो वय-नियम विहूणा वि मोक्खमिच्छंति पाणिणो । एए एतेण रूसंति एरिसं चिय कहेयव्वं ।।
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह