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________________ एवं संपेहेइ संपेहेत्ता कल्लं जाव जलते बहवे तावसे य दिट्ठाभट्ठे य पुव्वसंगतीते य तं चेव जाव मुद्दा मुहं बंधइ बंधित्ता अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ - जत्थेव णं अहं जलंसि वा अज्झयणं-३ थलंसि वा दुग्गंसि वा निन्नंसि वा पव्वयंसि वा विसमंसि वा गड्डाए वा दरीए वा पक्खलेज्ज व पवडेज्ज वा नो खलु मे कप्पइ पच्चुट्ठित्तए त्तिकट्टु अयमेयारूवे अभिग्गहं अभिगिण्हइ उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे महपत्थाणं पत्थिए, तणं से सोमिले माहणरिसी पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे व उवागए असोगवरपायवस्स अहे किढिय संकाइयं ठवेइ ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ वड्ढेत्ता उवलेवण-संमज्जणं करेइ करेत्ता दब्भकुसहत्थगए जेणेव गंगा महानई जहा सिवो जाव गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइ पच्चुतरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाए य वेदिं रएइ रएत्ता सरगं करेइ करेत्ता जाव बलिं वइस्सदेवं करेइ करेत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ बंधित्ता तुसिणी संचिट्ठइ । तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउ तणं से देवे सोमिलं माहणं एयं वयासी- हं भो! सोमिलमाहणा ! पव्वइया दुप्पवइयं ते, तए णं से सोमिले तस्स देवस्स दोच्चंपि तच्चंपि एयमट्ठे नो आढाइ नो परिजाणइ जाव तुसिणीए संचिट्ठइ, तए णं से देवे सोमिलेणं माहणरिसिणा अणाढाइज्जमाणे० जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए, तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव जलते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइय-गहियग्गिहोत्तभंडोवगरणे कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ बंधित्ता उत्तराभिमुहे संपत्थिए, तए णं से सोमिले बिइयदिवसंमि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव सत्तिवन्ने तेणेव उवगाए सत्तिवण्णस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ जहा असोगवरपायवे जाव अग्गिं हुणइ कट्ठमुद्दाए मुहं बंदइ तुससिणीए संचिट्ठिइ । तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए, तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे जहा असोगवरपायवे जाव पडिगए, तए णं से सोमिले कल्लं जाव जलते वागल वत्थनियत्थे कढिण संकाइय गेण्हत्ति गेण्हत्ति गेण्हित्ता कट्ठ मुद्दाए मुहं बंधंति, बंधित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए तए णं से सोमिले तइयदिवसंमि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ ठवेत्ता वेदिं वड्ढे गंगाओ महानईओ पच्चुत्तराइ पच्चुत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वेदिं रएइ रएत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए तं चेव भणइ जाव पडिगए, तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए० जाव उत्तराभिमुहे संपत्थिए, तए णं से सोमिले चउत्थिदिवसंमि पच्चावरण्ह - कालसमयंसि जेणेव वडपायवे तेणेव उवागए वडपायवस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ उवलेवण संमज्जणं करेइ जाव कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए तं चेव भणइ जाव पडिगए, तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए० जाव उत्तराभिमुहे संपत्थिए, तए णं से सोमिले पंचमदिवसंमि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव उंबरपायवे तेणेव उवागच्छइ उंबरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ जाव कट्ठ मुद्दाए मुहं बंधंति जाव तुसिणीए संचिट्ठइ । [दीपरत्नसागर संशोधितः] [6] [२१-पुप्फियाणं]
SR No.003741
Book TitleAgam 21 Puffiyanam Dasamam Uvvangsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages15
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 21, & agam_pushpika
File Size849 KB
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