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________________ इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरतं संसारकंतारं विईवइंसु एवं पडुप्पण्णे वि, एवं अणागए वि, दुवालसंगे णं गणिपिडगे णं कयाइ नासी कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सति य धुवे नितिए सासए अक्खए अव्व अवट्ठिए निच्चे से जहाणामए पंच अत्थिकाया न कयाइ न आसी न कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्संत भुविं च भवंति य भविस्संति य धुवा नितिया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया निच्चा एवमेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ न आसी न कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सइ य धुवे नितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निचे एत्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे अनंता भावा अनंता अभावा अनंता हेऊ अनंता अहेऊ अनंता कारणा अनंता अकारणा अनंता जीवा अनंता अजीवा अनंता भवसिद्धिया अनंता अभवसिद्धिया अनंता सिद्धा अनंता असिद्धा आघविज्जंति जाव उवदंसिज्जंति, एवं दुवालसंगं गणिपिडगं इति । [२३४] दुवे रासी पन्नत्ता तं जहा जीवरासी अजीवरासी य । पइण्णग समवाओ अजीवरासी दुविहा पन्नत्ता तं जहा- रूविअजीवरासी य अरूविअजीवरासी य । से किं तं अरुविअजीवरासी ? अरुविअजीवरासी दसविहा पन्नत्ता, तं जहा धम्मत्थिकाए जाव धम्मत्थिकायस्सदेसे, अद्धासमए, रूवी अजीवरासी अनेगविहा पन्नत्ता जाव से किं तं अनुत्तरोववाइआ ? | - अनुत्तरोववाइओ पंचविहा पन्नत्ता तं जहा - विजय - वेजयंत - जयंत अपराजित-सव्वट्ठसिद्धिया, सेत्तं अनुत्तरोववाइआ, सेत्तं पंचिदियसंसारसमावण्णा जीवरासी, दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहापज्जत्ता य अपज्जत्ता य, एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियत्ति । इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए केवइयं ओगाहेत्ता केवइया निरयावासा पन्नत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्त हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्जे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से एत्थ णं रयणप्पभाए ढव नेरइयाणं तीसं निरयावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं, ते णं नरया अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा जाव अभा निरया असुभातो नरएस वेयणाओ एवं सत्तवि भाणियव्वाओ जं जासु जुज्जइ । [ २३५ ] आसीयं बत्तीसं अट्ठवीसं तहेव वीसं च I अट्ठारस सोलसगं अट्ठात्तरमेव बाहल्लं || [२३६] तीसा य पन्नवीसा पन्नरस दसेव सयसहस्साइं । तिण्णेगं पंचूणं पंचेव अनुत्तरा नरगा || [२३७] दोच्चाए णं पुढवीए तच्चाए णं पुढवीए चउत्थीए पुढवे पंचमी पुढवीए छट्टीए पुढवीए सत्तमीए-पुढवीए गाहाहिं भाणियव्वा, सत्तमाए ण पुढवीए पुच्छा० गोयमा! सत्तमाए ढव अट्टुत्तरजोयणसयसहस्साइं बाहल्लाए उवरिं अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवणं जोयणसहस्साइं वज्जेत्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अनुत्तरा महइमहालया महानिरया पन्नत्ता तं जहा- काले महाकाले रोरूए महारोरूए अप्पइट्ठाणे नामं पंचमए ते णं नरया वट्टे य तंसा य अहे खुरप्पसंठाणं संठिया जाव असुभा नरगा असुभाओ नरसु वेयणाओ | [दीपरत्नसागर संशोधितः] [66] [४- समवाओ]
SR No.003707
Book TitleAgam 04 Samvao Chauttham Angsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages81
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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