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स्यक्खंधो-१, अज्झयणं-२, उद्देसो-६
• छहो - उद्देसो . [९८] से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए तम्हा पावं कम्मं नेव कुज्जा न कारवेज्जा ।
[९९] सिया तत्थ एगयरं विप्परामसइ छस् अन्नयरंसि कप्पति सुहट्ठी लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासमवेति, सएण विप्पमाएण पुढो वयं पकुव्वति, जंसिमे पाणा पव्वहिया पडिलेहाए नो निकरणाए, एस परिण्णा पवुच्चइ कम्मोवसंति ।।
[१००] जे ममाइय-मतिं जहाति से जहाति ममाइयं, से ह दिट्ठपहे मनी जस्स नत्थि ममाइयं, तं परिण्णाय मेहावी विदित्ता लोग वंता लोगसण्णं से मइमं परक्कमेज्जासि, त्तिबेमि |
[१०१] नारतिं सहते, वीरे वीरे नो सहते रतिं ।
जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रज्जति ।। [१०२] सद्दे य फासे अहियासमाणे, निव्विंद नंदि इह जीवियस्स |
मनी मोनं समादाय, घुणे कम्म-सरीरगं । [१०३] पंतं गुहं सेवंति वीरा समत्तदंसिणो एस ओघंतरे मुनी तिण्णे मुत्ते विरते वियाहिते, त्ति बेमि ।
[१०४] दुव्वसु मुनी अणाणाए तुच्छए, गिलाए वत्तए, एस वीरे पसंसिए अच्चेइ लोयसंजोयं एस नाए पवुच्चइ ।
[१०५] जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति इति कम्म परिण्णाय सव्वसो, जे अनन्नदंसी से अनन्नारामे जे अनन्नारामे से अनन्नदंसी, जहा पुण्णस्स कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थइ जहा तुच्छस्स कत्थइ तहा पुण्णस्स कत्थइ ।
[१०६] अवि य हणे अनादियमाणे एत्थंपि जाण सेयंति नत्थि, के यं पुरिसे कं च नए ?, एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिणचारी न लिप्पई छणपएण, वीरे से मेहावी अनग्घायणस्स खेयण्णे जे य बंधप्पमोक्खमन्नेसी, कुसले पण नो बद्धे नो मक्के ।
[१०७] से जं च आरंभे जं च नारभे अनारद्धं च नारभे छणं छणं परिण्णाय लोगसण्णं च सव्वसो |
[१०८] उद्देसो पासगस्स नत्थि, बाले पुण निहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवर्ल्ड अनपरियट्टइ - त्तिबेमि ।
बीए अज्झयणे छटो उद्देसो समत्तो मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च बीअं अज्झयणं समत्तं
तइयं अज्झयणं -सीओसणिज्जं
• पढमो - उद्धेसो. [१०९] सुत्ता अमुनी सया मुणिणो सया जागरंति ।
[११०] लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं, समयं लोगस्स जाणित्ता एत्थ सत्थोवरए जस्सिमे सद्दा य रुवा य गंधा य रसा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति ।
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[१-आयारो]