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श्रमण प्रतिक्रमण
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पच्चीस गुणों से सुशोभित उपाध्यायों को विनभ्रभाव से पंचांग प्रणतिपूर्वक वन्दना - तिक्खुत्तो आयाहिणं ।
णमो लोए सव्व साहूणं- अध्यात्म-साधना में संलग्न पांच महाव्रत, पंचेन्द्रिय - निग्रह, चार कषाय- विवेक, भावसत्य, करणसत्य, योगसत्य,' क्षमा, वैराग्य, मन-वचन-काय - समाहरणता ज्ञान- दर्शन - चारित्र संपन्नता, वेदना और मृत्यु के प्रति सहिष्णुता - इन सत्ताईस गुणों के धारक, परीषह - जयी, प्रासुक - एषणीय भोजी, अर्हत् और आचार्य की आज्ञा के आराधक, तपोधन साधु-साध्वियों को विनम्रभाव से पंचांग प्रणतिपूर्वक वन्दना - तिक्खुत्तो आयाहिणं ।
पंचविह आयारत्तो सुत्तत्थतदुभयविहण्णू
आहरणहेउकारणणयनिउणो गाहणाकुसलो । ससमय परसमय विऊ गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो, गुणसयकलिओ जुग्गो पवयणसारं परिकहिउं ॥२॥ १. भावधारा की पवित्रता २. कार्य की प्रामाणिकता ३. मन, वचन, काया की विशुद्धि ४. वापिस खींचना - जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, काएण वाया अ माणसेणं । तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा, आइन्नओ खिमिवक्खलीणं ॥
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