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________________ ५८ भगवद्भ्यः आदिकरेभ्यः तीर्थ करेभ्यः स्वयंसम्बुद्धेभ्यः पुरुषोत्तमेभ्यः पुरुषसिंहेभ्यः पुरुषवरपुंडरीकेभ्यः पुरुषवरगंधहस्तिभ्यः लोकोत्तमेभ्यः लोकनाथेभ्यः लोकहितेभ्यः लोकप्रदीपेभ्यः लोकप्रद्योतकरेभ्यः अभयदयेभ्यः चक्षुर्दयेभ्यः मार्गदयेभ्यः शरणदयेभ्यः जीवदयेभ्यः बोधिदयेभ्यः धर्मदयेभ्यः धर्म देशकेभ्यः धर्म नायकेभ्यः धर्मसारथिभ्यः धर्म - वर चातुरंत चक्रवर्तिभ्यः दीपः त्राणं शरण-गति प्रतिष्ठा अप्रतिहत-वर - ज्ञानदर्शनधरेभ्यः विवृतछद्द्मभ्यः जिनेभ्यः जापकेभ्यः तीर्णेभ्यः तारकेभ्यः बुद्धेभ्यः बोधकेभ्यः Jain Educationa International भगवान् धर्म के आदिकर्ता तीर्थंकर स्वयं सम्बुद्ध पुरुषोत्तम पुरुषसिंह पुरुषों में प्रवर पुंडरीक पुरुषों में प्रवर गंधहस्ती लोकोत्तम लोकनाथ श्रमण प्रतिक्रमण लोकहितकारी लोकप्रदीप लोक में उद्योत करने वाले अभयदाता चक्षुदाता मार्गदाता शरणदाता जीवनदाता बोधदाता धर्मदाता धर्मोपदेष्टा धर्म नायक धर्म सारथि धर्म के प्रवर चतुर्दिक व्यापी चक्रवर्ती जो दीप हैं त्राण हैं शरण, गति और प्रतिष्ठा है अबाधित प्रवरज्ञान - दर्शन के धारक आवरण-रहित जयी या ज्ञाता जिताने वाले या ज्ञापक तीर्ण तारक बुद्ध Parfararar For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003698
Book TitleShraman Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M001
File Size3 MB
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