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________________ श्रमण प्रतिक्रमण ७. श्रीन्द्रिय असंयम १४. अपहृत्य असंयम ८. चतुरिन्द्रिय असंयम १४. अप्रमार्जन असंयम ९. पञ्चेन्द्रिय असंयम १५. मन असंयम १०. अजीवकाय असंयम १६. वचन असंयम ११. प्रेक्षा असंयम १७. काया असंयम १२. उपेक्षा असंयम पृथ्वीकाय आदि पांच स्थावर जीवों तथा द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीवों का मन, वचन, काया से संघट्टन आदि करना, उन्हें पीड़ा पहुंचाना--यह इन जीवों के प्रति किया जाने वाला असंयम है। अजीव वस्तुएं जो निरन्तर काम में ली जाती हैं, उनके व्यवहरण में जो प्रमाद होता है, वह अजीवकाय असंयम है। स्थान आदि का प्रतिलेखन न करना-प्रेक्षा असंयम है। सार्मिक व्यक्तियों को संयम के प्रति प्रेरित न करना-उपेक्षा असंयम है । परिष्ठापन योग्य भोजन, वस्तु आदि का परिष्ठापन न करनाअपहृत्य असंयम है। अकुशल मन का प्रवर्तन करना मन असंयम है। अकुशल वचन का प्रर्वतन करना वचन असंयम है। काया की असम्यक् प्रवृत्ति करना काय असंयम है । ११. अठारह प्रकार का अब्रह्मचर्य अब्रह्मचर्य दो प्रकार का होता है-औदारिक और दिव्य । औदारिक के अन्तर्गत तिर्यञ्चों और मनुष्यों का समावेश होता है और दिव्य देवता से सम्बधित है। देव, मनुष्य और तिर्यञ्च के साथ तीन कारण-(मन, वचन और काया) से तथा तीन योग-(करना, कराना और अनुमोदन करना)-से अब्रह्मचर्य का सेवन करना । तीनों-देव, मनुष्य और तिर्यञ्च के साथ छहछह विकल्प होने से उनका कुल योग अठारह हो जाता है ---६४३=१८ १३. ज्ञाता के उन्नीस अध्ययन (समवाओ, १९/१) ज्ञाता धर्मकथा छट्ठा अंग है । इसके दो श्रुतस्कंध हैं । प्रथम श्रुतस्कंध में उन्नीस अध्ययन हैं। ___ इन अध्ययनों के प्रति कोई प्रकार का अतिचार करना श्रुत का दोष है। १४. असमाधि के बीस स्थान (समवाओ, (२०/१) समाधि का अर्थ है-चित्त की नीरोगता, चित्त की निर्मलता। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003698
Book TitleShraman Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M001
File Size3 MB
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