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दो शब्द
श्रमण प्रतिक्रमण को व्यवस्थित रूप देने की कल्पना बहुत दिनों से हो रही थी । बालोतरा चतुर्मास (सन् १९८३ ) में वह कल्पना आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में साकार हुई। अब वह संशोधित मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद और भावार्थ सहित प्रस्तुत है ।
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