________________
२८
प्रतिक्रामामि
चतसृषु संज्ञासु
आहारसंज्ञायां
भयसंज्ञायां
मैथुनसंज्ञायां
परिग्रहसंज्ञायां
प्रतिक्रामामि
चतसृषु freere
स्त्रीकथायां
भक्तकथायां
देशकथायां
राजकथायां
प्रतिकामामि
चतुर्षु ध्यानेषु
आर्त्तध्याने
रौद्र ध्याने
धर्मध्याने
शुक्लध्याने
प्रतिकामामि
पञ्चसु क्रियासु
काfutri
आधिकरणिari
प्रादोषियां
पारितानिक्यां
प्राणातिपातक्रियायां
प्रतिक्रामामि
पञ्चसु कामगुणेषु
शब्दे
रूपे
गंधे
रसे
स्पर्श
प्रतिक्रामामि
Jain Educationa International
प्रतिक्रमण करता हूं
चार प्रकार की संज्ञाओं में
श्रमण प्रतिक्रमण
आहारसंज्ञा
भयसंज्ञा
मैथुनसंज्ञा और
परिग्रहसंज्ञा में | प्रतिक्रमण करता हूं
चार प्रकार की विकथाओं में-
स्त्री-सम्बन्धी कथा
भोजन - सम्बन्धी कथा
देश - सम्बन्धी कथा और
राजा या राज्य-सम्बन्धी कथा में |
प्रतिक्रमण करता हूं
चार प्रकार के ध्यान में
आर्त्तध्यान
रौद्रध्यान
धर्म्यध्यान और
शुक्लध्यान में । प्रतिक्रमण करता हूं
पांच प्रकार की क्रियाओं में
शरीर से होने वाली क्रिया
शस्त्र आदि हिंसक उपकरणों वाली
अथवा कलह सम्बन्धी क्रिया
प्रद्वेष से होने वाली क्रिया
दूसरों को परितप्त करने की क्रिया और
जीवहिंसायुक्त क्रिया में ।
प्रतिक्रमण करता हूं
पांच प्रकार के काम-विषयों में
शब्द
रूप
गन्ध
रस और
स्पर्श में ।
प्रतिक्रमण करता हूँ
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org