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________________ २४ संस्कृत छाया प्रतिक्रामामि चतुष्कालं स्वाध्यायस्य अकरणे उभयकालं भाण्डोपकरणस्य अप्रतिलेखनायां दुष्प्रतिलेखनायां अप्रमार्जनायां दुष्प्रमार्जनायां अतिक्रमे व्यतिक्रमे अतिचारे अनाचारे यो मया वैवसिक: अतिचार: कृतः तस्य मिथ्या मे दुत्कृतम् । भावार्थ शब्दार्थ प्रतिक्रमण करता हूं । चातुष्कालिक स्वाध्याय के न करने दोनों समय पात्र - वस्त्र आदि उपकरण का प्रतिलेखन न करने अविधिपूर्वक प्रतिलेखन करने अप्रमार्जन करने अविधिपूर्वक प्रमार्जन करने अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार अनाचार में जो Jain Educationa International मैंने दैव सिक अतिचार किया हो उससे संबंधित निष्फल हो मेरा दुष्कृत । श्रमण प्रतिक्रमण मैं प्रतिक्रमण करता हूं- चातुष्कालिक ( दिन के प्रथम और अन्तिम प्रहर तथा रात के प्रथम और अन्तिम प्रहर ) स्वाध्याय न किया हो, दिन के प्रथम तथा अन्तिम प्रहर में पात्र, वस्त्र आदि उपकरणों का प्रतिलेखन न किया हो अथवा विधि से किया हो, स्थान आदि का प्रमार्जन न किया हो अथवा अविधि से किया हो, अतिक्रम -- दोष सेवन के लिए मानसिक संकल्प किया हो, व्यतिक्रम - दोष सेवन के लिए प्रस्थान किया हो, ( अतिचार - दोष - सेवन के लिए तत्परता की हो, सामग्री जुटा ली हो, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003698
Book TitleShraman Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M001
File Size3 MB
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