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________________ १० आशातनायां यो मया अतिचार: कृतः तस्य क्षमाश्रमण ! प्रतिक्रामामि निन्दामि आत्मानं व्युत्सृजामि भावार्थ आशातना के विषय में जो मैंने श्रमण प्रतिक्रमण अतिचार किया उसका क्षमाश्रमण ! प्रतिक्रमण करता हूं उसकी निन्दा करता हूं उसकी गर्दा करता हूं आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूं । क्षमाश्रमण | मैं संयत निषद्या से संयमपूर्वक बैठकर आपको वन्दना करना चाहता हूं । आप मुझे अपने परिमित अवग्रह में आने की अनुज्ञा दें । (अनुज्ञा प्राप्त करने के बाद) बैठकर मैं आपके चरण का सिर से स्पर्श करता हूं। इस स्पर्श में आपको कोई कष्ट हुआ हो तो आप मुझे क्षमा करें । आष्टानुभूति से रहित हैं । आपका यह दिन कल्याणकारी प्रवृत्ति में बीता ? निर्विघ्नरूप में रही ? Jain Educationa International आपकी यात्रा - तप, नियम, स्वाध्याय, ध्यान की प्रवृत्ति - प्रशस्त आपका यमनी - इन्द्रिय और मानसिक संयम प्रशस्त रहा ? क्षमाश्रमण ! आपके प्रति होनेवाले दिवस सम्बन्धी व्यतिक्रम के लिए आप मुझे क्षमा करें । आपके प्रति अवश्य करणीय कार्य में मेरा कोई प्रमाद हुआ हो तो मैं उसका प्रतिक्रमण करता हूं । आपकी तेंतीस में से कोई एक भी आशातना की हो, आपके प्रति यत् किञ्चित् मिथ्याभाव आया हो या मिथ्या व्यवहार किया हो, आपके प्रति मन में कोई बुरा विचार आया हो, वचन का दुष्प्रयोग किया हो, काया की दुष्प्रवृत्ति की हो, आपके प्रति यदि क्रोध, मान, माना और लोभ के आवेश में कोई अवांछनीय व्यवहार किया हो, सर्वकाल में होनेवाली, सर्व मिथ्या उपचारों मे युक्त, सब धर्मों का अतिक्रमण करनेवाली कोई भी आशातना की हो, उसके विषय में जो मैंने अतिचार किया हो । हे क्षमाश्रमण मैं उसका प्रतिक्रमण करता हूं, निंदा करता हूं, गर्हा करता हूं, आशातना में प्रवृत्त अपने आपका व्युत्सर्ग करता हूं । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003698
Book TitleShraman Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M001
File Size3 MB
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