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________________ महावीर-“गौतम ! अन्यतीर्थिकों का उक्त कथन ठीक नहीं है। इस विषय में मेरा सिद्धान्त यह है-राजगृह के तो क्या संसारभर के सब जीवों के सुख-दुःखों को इकट्ठा करके लिक्षा-परिमाण भी दिखाने को कोई समर्थ नहीं है। गौतम ! सम्पूर्ण लोक के सुख-दुःखों को इकट्ठा करने पर भी उसका पिण्ड लिक्षा के बराबर भी क्यों नहीं होता, इसको मैं एक दृष्टान्त से समझाऊँगा। मान लो कि कोई एक महान् सामर्थ्यवान् देव है। वह सुगन्धी से भरा हुआ एक डिब्बा लेकर लक्ष-योजन परिमाण वाले सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के ऊपर पलक मात्र में इक्कीस बार चक्कर काटता हुआ डिब्बे की तमाम सुगन्धी सारे जम्बूद्वीप में बिखेर दे, तब वे सुगन्धी-पुद्गल सम्पूर्ण जम्बूद्वीप का स्पर्श करेंगे या नहीं?'' गौतम-“हाँ, भगवन् ! वे सूक्ष्म सुगन्धी-परमाणु सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में फैलकर उसका स्पर्श कर लेंगे।' महावीर-“गौतम ! अगर उन सूक्ष्म सुगन्धी-परमाणुओं को कोई फिर इकट्ठा करना चाहे तो क्या वह एक लिक्षा-परिमाण भी इकट्ठा करके दिखा सकता है ?" गौतम-“नहीं भगवन् ! उन सूक्ष्म पुद्गलों को फिर इकट्ठा कर दिखाना अशक्य है।" महावीर-“इसी प्रकार लोकगत सर्वजीवों के सम्पूर्ण सुख-दुःखों को इकट्ठा करके लिक्षा-परिमाण भी दिखाने को कोई समर्थ नहीं है।"९१ एकान्त दुःखवेदना के सम्बन्ध में गौतम ने पूछा-"भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं कि प्राण, भूत और सत्त्वनामधारी सर्वजीव एकान्त दुःख को भोगते हैं। क्या यह कथन सत्य है ?" महावीर-“नहीं, गौतम ! अन्यतीर्थिकों का उक्त कथन ठीक नहीं है। सिद्धान्त यह है कि कुछ जीव नित्य एकान्तदुःख को भोगते हैं और कभी-कभी सुख को। कुछ जीव नित्य एकान्त-सुख का अनुभव करते हैं और कभी-कभी दुःख का। तब कितने ही जीव सुख और दुःख को अनियमितता से भोगते हैं। ___ नारक जीव नित्य एकान्त-दुःख का अनुभव करते हैं और समय-विशेष में वे सुख को भी पाते हैं। भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव एकान्त-सुख का अनुभव करते हैं, पर समय-विशेष में वे दुःख को भी भोगते हैं। पृथ्वीकायिक आदि तिर्यञ्चगति के जीव और मनुष्य अनियमितता से सुख-दुःख को भोगते हैं। कभी वे सुख-विपाक को भोगते हैं और कभी दुःख-विपाक को। ९२ इस वर्ष का वर्षावास भगवान ने राजगृह में किया। बयालीसवाँ वर्ष वर्षा चातुर्मास के बाद भी भगवान महीनों तक राजगृह में ठहरे। इस बीच उनके गणधर अव्यक्त, मण्डिक, मौर्यपुत्र और अकम्पित मासिक अनशनपूर्वक गुणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए। दुषम-दुषमकाल का भारत और उसके मनुष्य इन्द्रभूति गौतम ने पूछा- "भगवन् ! अवसर्पिणी काल के दुषम-दुषमा समय के पूर्ण रूप से लग जाने पर जम्बूद्वीप के भारतवर्ष की क्या अवस्था होगी?" महावीर-“गौतम ! उस समय का भारत हाहाकार, आर्तनाद और कोलाहलमय होगा। विषमकाल के प्रभाव से कठोर, भयंकर और असह्य हवा के बवण्डर उठेंगे और आँधियाँ चलेंगी जिनसे सब दिशाएँ धूमिल, रजस्वला और अन्धकारमय हो जायेंगी। समय की रूक्षता के वश ऋतुएँ विकृत हो जायेंगी, चन्द्र अधिक शीत फेंकेंगे और सूर्य अत्यधिक गर्मी करेंगे। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र २४३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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