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________________ ५६ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म - सर्वविरति सामायिक की प्रतिपत्ति (प्राप्ति) आठ समय तक निरन्तर हो सकती है । तत्पश्चात सर्वत्र विरह होता है। विरह-काल-समस्त लोक में कोई भी जीव नवीन सामायिक कितने समय तक प्राप्त नहीं करता, वही यहाँ स्पष्ट किया गया है। सम्यक्त्व, श्रुत सामायिक का उत्कृष्ट विरह-काल सात अहोरात्रि है, तत्पश्चात् कोई जीव अवश्य सामायिक प्राप्त करता है। देशविरति सामायिक का उत्कृष्ट विरह काल बारह अहोरात्रि है, तत्पश्चात् कोई जीव अवश्य सामायिक प्राप्त करता है। सर्वविति सामायिक का उत्कृष्ट विरह काल पन्द्रह अहोरात्र है, तत्पश्चात् कोई जीव अवश्य सामायिक प्राप्त करता है। भव द्वार-इस द्वार में कितने भव तक सामायिक प्राप्त हो सकती है-यह बताया जाता है। सम्यक्त्व एवं देशविरति सामायिक को एक जीव समस्त भव-चक्र में उत्कृष्ट से असंख्य भव (अर्थात् क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग में जितने प्रदेश हों उतने भव) तक प्राप्त कर सकता है और जघन्य से एक भव के पश्चात् मोक्ष होता है। सर्वविरति सामायिक को उत्कृष्ट से आठ भव तक प्राप्त करता है और जघन्य से एक भव पश्चात् मुक्ति । सामान्य श्रुत को अनन्त भवों तक प्राप्त कर सकता है। जघन्य से मरुदेवी माता की तरह एक भव के पश्चात् मुक्ति। आकर्ष द्वार-आकर्ष अर्थात् सम्यक्त्व आदि सामायिक को सर्वप्रथम आकर्षित करना, अर्थात् प्राप्त करना; अथवा चली गई सम्यक्त्व आदि सामायिक को पुनः ग्रहण करना-प्राप्त करना। (१) प्रथम तीन सामायिकों का आकर्ष एक भव में दो से नौ सौ बार हो सकता है। यह उत्कृष्ट की बात हई। जघन्य से प्रत्येक सामायिक का एक ही आकर्ष होता है। छोटे-छोटे भवों की अपेक्षा से तो सम्यक्त्व और देशविरति सामायिक में आकर्ष उत्कृष्ट से दो से नौ हजार असंख्याता बार होता है । चारित्र का आकर्ष उत्कृष्ट से दो से नौ हजार बार, सामान्य श्रुत के अनन्त "आकर्ष" होते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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