SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक का विषय ४३ जोवन पाकर धर्म-श्रवण आदि की उत्तम सामग्री प्राप्त करके भी उसके प्रति श्रद्धा एवं उसकी आराधना किये बिना केवल मृग-तृष्णा तुल्य भौतिक सुखों के पीछे जीवन की इतिश्री मानने वाले व्यक्तियों की होती है । _ मानव-जन्म प्राप्त करने की अपूर्व खुमारी जिसके हृदय में हिलोरें ले रही हो, वही व्यक्ति अहर्निश सद्धर्म का श्रवण, श्रद्धान एवं उसकी आराधना के द्वारा तन, मन और जीवन को पवित्रतम बना कर क्रमशः चारों सामायिकों को प्रकट करने के धन्यतम क्षण प्राप्त करने का परम सौभाग्य प्राप्त कर सकता है। सम्यक्त्व आदि सामायिक प्राप्त करने के अनेक निमित्त शास्त्रों में वर्णित हैं जैसे - - (१) प्रतिमा-दर्शन-वीतराग परमात्मा को शान्तरस प्रवाहित करती परम पावन प्रतिमा के दर्शन मात्र से यूगों पुराने कर्मों के ढेर के ढेर ढहने लगते हैं, आत्मा लघु-कर्मी हो जाती है, मोह मन्द हो जाता है, राग का प्रवाह रुकने लगता है और द्वष का दावानल बुझने लगता है। परमात्मा के शुद्धात्म स्वरूप का चिन्तन करते-करते स्वात्मा के शुद्ध स्वरूप का ध्यान आता है और उसे प्रकट करने की तीव्र रुचि, उत्कण्ठा जागृत होती है । इस प्रकार शुभ अध्यवसायों की धारा में अग्रसर होने पर कोई पुण्यात्मा ग्रन्थि-भेद से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करता है अर्थात् “सम्यक्त्व सामायिक" को प्राप्त करता है। साथ ही साथ "श्रुत सामायिक" को भी और आगे बढ़कर देशविरति अथवा सर्वविरति सामायिक को भी प्राप्त कर सकता है । इस सम्बन्ध में आर्द्र कुमार का दृष्टान्त अत्यन्त प्रेरक है। अनार्य देश में उत्पन्न होने पर भी अभयकुमार द्वारा प्रेषित परमात्मा की प्रतिमा के दर्शन मात्र से आर्द्र कुमार की आत्मा जग जाती है। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति, आर्य देश में आगमन, यावत् चारित्र-ग्रहण, क्षपक श्रेणी और केवलज्ञान तथा अन्त में परमपद की प्राप्ति-इस सब में मूल कारण परमात्मा की पुण्यमयी प्रतिमा का दर्शन हो तो था न ? । अरे, तिर्यंच योनि में स्थित स्वयंभूरमण समुद्र की मछली को प्रतिमा के आकार वाले अन्य मत्स्य अथवा कमल का दर्शन होने पर पूर्व अनुभूत परमात्म-दर्शन के संस्मरण जागृत होते हैं, जाति-स्मरण-ज्ञान होता है और पूर्वजन्म में की गई विराधना का यह परिणाम ज्ञात होने पर वह उसके लिये अत्यन्त पश्चात्ताप करती है जिससे उसके समस्त अशुभ कर्म जलकर भस्म हो जाते हैं और सम्यग्दर्शन की अर्थात् सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy