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सामायिक की विशालता २१
(१२) जन्मद्वार 1 -- जीवों का जन्म चार प्रकार से होता है(१) जरायुज, (२) अण्डज, (३) पोतज एवं (४) उपपात ।
(१) जरायुज - मनुष्य को चारों सामायिक दोनों प्रकार से होती है, नवीन सामायिक प्राप्त कर सकते हैं और पूर्वप्रतिपन्न होते हैं ।
(२-३) अण्डज एवं पोतज - आद्य दो सामायिक अथवा देशविरति सामायिक प्राप्त कर सकते हैं ओर पूर्वप्रतिपन्न भी होते हैं ।
(४) उपपात - देव- नारक - आद्य दो सामायिक के प्रतिपत्ता और पूर्वप्रतिपन्न होते हैं । यहाँ सम्मूच्छिम जीवों की विवक्षा नहीं की, क्योंकि वे एक भी सामायिक प्राप्त नहीं कर सकते ।
(१३) स्थिति द्वार - आयुष्य के अतिरिक्त सातों कर्म की उत्कृष्ट
१ (१) जरायुज - जो जरायु (मांस, रक्त से पूर्ण एक प्रकार का जाल सा आवरण होता है) से उत्पन्न होता है जैसे - मनुष्य, गाय आदि ।
(२) अंडज - जो अण्डे से उत्पन्न हो वह अंडज जैसे - कबूतर, चिड़िया, सांप आदि ।
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(३) पोतज - जो किसी भी आवरण में लिप्त हुए बिना उत्पन्न होता है जैसे - हाथी, खरगोश, चूहा आदि ।
(४) औपपातिक — देवों और नारकों का उपपात जन्म होता है । उनके जन्म के लिये जो विशेष स्थान नियत होता है वह उपपात कहलाता है ।
२ आठ कर्मों की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति -
कर्म
१. ज्ञानावरणीय २. दर्शनावरणीय ३० कोटा ३० कोटा
कोटि
कोटि
उत्कृष्ट
स्थिति
जघन्य
स्थिति
कर्म -
उत्कृष्ट
स्थिति
जघन्य
स्थिति
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सागरोपम
अन्तर्मुहूर्त
आयुष्य
३३ साग
रोपम
अन्तर्मुहूर्त
सागरोपम
अन्तर्मुहूर्त
नाम
२० कोटाकोटि
सागरोपम
मुहूर्त
පු
३. वेदनीय ४.
मोहनीय
३० कोटा ७० कोटा
कोटि
८
सागरोपम
१२ मुहूर्त
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गोत्र
अंतराय
२० कोटाकोटि ३० कोटाकोटि
सागरोपम
सागरोपम
मुहूर्त
कोटि
सागरोपम
अन्तर्मुहूर्त
अन्तर्मुहूर्त
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