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सर्वज्ञ कथित: परम सामायिक धर्म
२. सामायिक में तत्त्वत्रयी एवं तत्वत्रयी में सामायिक :
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सामायिक सूत्र में प्रथम "भन्ते" शब्द देव तत्त्व का सूचक है, अन्तिम " भन्ते” शब्द गुरु तत्त्व का सूचक है और "सामायिक" शब्द चारित्र धर्म का सूचक है ।
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देवाधिदेव अरिहन्त परमात्मा में सम्पूर्ण चारित्र निहित है, गुरु तत्त्व में सर्वविरति चारित्र है और धर्म तो स्वयं सामायिक स्वरूप है ही । इस प्रकार सामायिक, रत्नत्रयी और तत्त्वत्रयी परस्पर एक दूसरे से संकलित हैं ।
३. सामायिक में पंच परमेष्ठि और पंच परमेष्ठि में सामायिक उपर्युक्त तत्त्वत्रयी में "देव तत्त्व" अरिहन्त एवं सिद्ध स्वरूप है । गुरु तत्त्व आचार्य, उपाध्याय एवं साधु स्वरूप है ।
धर्म तत्त्व सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप स्वरूप है ।
इस प्रकार नव पद ( नौ पद) एवं सामायिक भी एक-दूसरे में सन्निहित है ।
सामायिक में शरणागति, दुष्कृत गर्दा एवं सुकृत अनुमोदन भी निहित है ।
'भन्ते' पद से अरिहन्त आदि की शरणागति स्वीकार की जाती है ।
पडिक्कमामि, निदामि, गरिहामि पदों के द्वारा स्वदुष्कृतों की निन्दा की जाती है ।
'करेमि सामाइयं' पद से सुकृत का सेवन एवं अनुमोदन होता है । सामायिक मोक्ष का अनन्य कारण हैं ।
'ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्ष : ' - सम्यग्ज्ञान और क्रिया दोनों के सम्मिलन से ही मोक्ष होता है ।
सामायिक ज्ञान एवं क्रिया उभय स्वरूप है ।
नमस्कार महामन्त्र के उच्चारण पूर्वक ही सामायिक स्वीकार की जाती है ।
नमस्कार महामन्त्र पंच मंगल श्रुतस्कन्ध स्वरूप द्वादशांगी का सार होने से सम्यग्ज्ञान स्वरूप है और सामायिक सम्यग् चारित्र स्वरूप होने से सम्यक् क्रिया है ।
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