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________________ १. सामायिक का महत्व अनन्तानन्त श्री तीर्थंकर भगवान जिम सामायिक धर्म को अङ्गोकार करके, जीवन में उसका साक्षात्कार करके केवलज्ञानी बनते हैं, सर्वप्रथम वे उसी सामायिक धर्म का उपदेश देते हैं । इसी प्रकार से चरम तीर्थाधिपति श्री महावीर भगवान ने भी सर्वप्रथम सामायिक धर्म का उपदेश दिया है। वह उपदेश आज भी आगम ग्रन्थों में यथार्थ रूप में विद्यमान है, जिसके अध्ययन-मनन से हम सब सामायिक धर्म में यथाशक्ति श्रद्धा से एवं उसके आचरण के द्वारा आत्मिक आनन्द का आंशिक रूप में अनुभव कर सकते हैं । जिनागम का उद्भव जिनागमों की किस प्रकार, किसके द्वारा रचना की गई, इस सम्बन्ध आगम ग्रन्थों में एक सुन्दर रूपक के द्वारा उन्हें स्पष्ट किया गया है। तप, नियम एवं ज्ञान रूपी वृक्ष पर आरूढ़ अपरिमित ज्ञानी श्री तीर्थंकर भगवान भव्य आत्माओं को बोध देने के उद्देश्य से वचन रूपी पुष्पों की वृष्टि करते हैं, जिसे गणधर भगवन्त बुद्धिमय पट (वस्त्र) के द्वारा सम्पूर्णतया ग्रहण करके प्रवचन शासन के हितार्थ सूत्र रूप में गुम्फित करते हैं । ' तीर्थ की स्थापना करने के पश्चात् तीर्थंकर भगवान जो अर्थ स्वरूप प्रवचन देते हैं उसे बीज - बुद्धि निधान श्री गणधर भगवान सूत्रबद्ध करते हैं, जिससे श्रुत बनते हैं । १ तव नियमनाणरुक्खं आरूढो केवली अमियनाणी । तो मुयइ नाणवुट्ठि भवियमणविबोहणट्टाए || तं बुद्धिमएण पटेण गणहरा गिहिउ निरवसेसं । तित्थयर भासियाइं गंथंति तओ पवयणट्ठा ॥ २ अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं । सासणस्स हियट्ठाए तओ सुत्तं पवत्तइ ॥६२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only - आवश्यक नियुक्ति www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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