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________________ १५६ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म समाधि स्वरूप है। समापत्ति और समाधि परस्सर कार्य-कारण-भाव स्वरूप होने से दोनों की क्वचित् एकता प्रसिद्ध है। "कायोत्सर्ग" समाधि (समापत्ति) स्वरूप है। इसका रहस्य समझने के लिये निम्नलिखित शास्त्रीय पाठ अत्यन्त उपयोगी होंगे __चैत्यवन्दन सूत्र की व्याख्या रूप-"ललित विस्तरा" ग्रन्थ में सूरिपुरन्दर श्रीमद् हरिभद्रसूरीश्वर जी ने “कायोत्सर्ग" का महान् रहस्य इस प्रकार बताया है 'अन्नत्थ सूत्र"-सहित अरिहात चेइयाणं सूत्र-चैत्यस्तव अथवा कायोत्सर्ग दण्डक कहलाता है, जिसमें ४३ पद, ८ सम्पदा एवं २२६ वर्ण होते हैं। ___ इस सूत्र का उच्चारण एवं कायोत्सर्ग "जिनमुद्रा"1 के द्वारा किया जाता है। इस सूत्र में कायोत्सर्ग का स्वीकार, निमित्त (प्रयोजन), हेतु (साधन), आगार, (काउस्सग में रखी हुई छुट), अवधि (मर्यादा) और उसके स्वरूप का वर्णन आठ सम्पदाओं द्वारा हुआ है। यह जानने से कायोत्सर्ग का महत्त्व समझ में आता है। ___“अरिहन्त चेइयाणं-करेमि काउस्सग्ग" पद के द्वारा काया के उत्सर्ग अर्थात् त्याग करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। प्रस्तुत सूत्र का अर्थ ___अरिहन्त चैत्यों अर्थात् जिन-प्रतिमाओं को वन्दन करने के लिए मैं (लाभार्थ) कायोत्सर्ग करता हूँ अर्थात् उच्छ्वास आदि आगारों के अतिरिक्त काया को एक स्थान पर स्थिर रखकर, वाणी को सर्वथा मौन रखकर, मन को शुभ ध्यान में लगाकर शेष प्रवृत्तियों का सर्वथा त्याग करता हूँ, अर्थात् मैं निश्चल ध्यान रूप समाधि में प्रवेश करता हूँ। निमित्त-ऐसा निश्चल ध्यान अथवा समाधिस्वरूप कायोत्सर्ग करने के कारण स्पष्ट किये जाते हैं पापक्षपण, वन्दन, पूजन, सत्कार, बोधि (सम्यक्त्व) लाभ, निरुप जिस ध्यान आदि क्रिया में जिनेश्वर के समान मुद्रा रखी जाये वह, अथवा जिन राग-द्वेष आदि विघ्नों की विजेता मुद्रा अथवा जिसमें खड़े रहते समय दोनों पाँवों के अग्रभाग परस्पर चार अंगुल दूर और पिछला भाग उससे तनिक दूर रखा जाये वह "जिनमुद्रा" कहलाती है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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