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समापत्ति और सामायिक १३१ आगम की दृष्टि से-जिन पदार्थों का ज्ञाता उनके उपयोगवाला हो तो उक्त ज्ञाता भी तत्परिणत होने से आगम से भाव निक्षेप के द्वारा वह तत्स्वरूप कहलाता है, जैसे नमस्कार में उपयोग वाली आत्मा नमस्कार परिणत होने से वह नमस्कार कहलातो है । ध्येयरूप अरिहन्त परमात्मा के चार निक्षेप
(१) नाम अरिहन्त - अरिहन्त परमात्मा का नाम । (२) स्थापना अरिहन्त-अरिहन्त परमात्मा की मूर्ति ।
(३) द्रव्य अरिहन्त - अरिहन्त परमात्मा की पूर्व अवस्था अथवा सिद्ध अवस्था।
(४) भाव अरिहन्त - दो भेद
(१) नोआगम से भाव अरिहन्त-समवसरण स्थित अरिहन्त परमात्मा।
(२) ..गम से भाव अरिहन्त - अरिहन्त परमात्मा के उपयोग में तदाकार बनी आत्मा आगम से "भाव अरिहन्त" कहलाती है। यही बात प्रस्तुत समारत्ति के स्वरूप में भी घटित होती है।
ध्येय रूप परमात्मा के ध्यान में तन्मय बनी आत्मा की समापत्ति सिद्ध हुई कहलाती है, और वही ध्याता आगम से भाव निक्षेप में अरिहन्त" कहलाता है। इस प्रकार 'आगम से भाव निक्षेप" एवं 'समापत्ति" के विषय की समानता सूक्ष्म दृष्टि से विचारणीय है।
(१) नाम एवं स्थापना निक्षेप-अरिहन्त एवं सिद्ध परमेष्ठियों के नाम-स्मरण एवं मूर्तियों के दर्शन से चित्त निर्मल बनता है।
(२) द्रव्य निक्षेप अरिहन्त आदि परमेष्ठियों की पूर्व अथवा उत्तर अवस्था के चिन्तन से चित्त स्थिर होता है।
(३) भाव-निक्षेप-नो आगम से समवसरण स्थित अरिहन्त के ध्यान से चित्त तन्मय होने पर समापत्ति सिद्ध होती है, तब साधक आगम से भाव निक्षेप से अरिहन्त कहलाता है। नाम आदि प्रत्येक निक्षेप की साधना से भी समापत्ति सिद्ध हो सकती है, परन्तु जो साधक ‘आगम से भाव निक्षेप से" अरिहन्त अथवा सिद्ध बनता है. वही क्रमानुसार “नोआगम से भाव निक्षेप से" अरिहन्त अथवा सिद्ध बन सकता है।
१ "नमोक्कार परिणओ जो तओ नमोक्कारो।" (विशेषावश्यक-गाथा २६३२)
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