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समापत्ति और सामायिक १२६ समापत्ति को सामग्री
(१) निर्मल ध्याता निर्मल अन्तरात्मा (देह आदि भावों का साक्षी मात्र)
(२) शुभ ध्येय ध्येय अशुद्ध हो तो समापत्ति नहीं हो सकती। अतः ध्येय की शुद्धि अत्यन्त आवश्यक है।
(३) शुभ ध्यान- आदर-सम्मान पूर्वक एकाग्र शुभ चिन्तन ।
परमात्म समापत्ति सिद्ध करने के लिए चित्त को निर्मल, स्थिर एवं तन्मय बनाना चाहिये अथवा शास्त्रोक्त किसी भी अनुष्ठान के विधिपूर्वक पालन से जब चित्त की निर्मलता, स्थिरता एवं तन्मयता प्राप्त होती है, तब परमात्मा के साथ समापत्ति सिद्ध होती है। नाम आदि निक्षेप एवं समापत्ति
श्री "अनुयोग द्वार" एवं विशेषावश्यक भाष्य आदि ग्रन्थों में चार निक्षेप का विस्तृत विवेचन किया गया है।
नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव ये चारों वस्तु के ही पर्याय हैं। भाव साध्य है । नाम, स्थापना और द्रव्य उसके साधन हैं। किसी भी वस्तु का स्पष्ट स्वरूप इन चार प्रकार के निक्षेपों के चिन्तन के बिना समझ में नहीं आता।
प्रस्तुत में समापत्ति के स्वरूप का विचार चार निक्षेपों के द्वारा करना है, ताकि आगम-ग्रन्थों के गूढ़ रहस्यों को भी सरलतापूर्वक समझा जा सके।
(१) नाम समापत्ति - किसी भी जीव अथवा अजीव वस्तु का नाम 'समापत्ति" हो तो वह नाम मात्र से समापत्ति कहलाती है ।
(२) स्थापना समापत्ति-समापत्ति ये चार अक्षर अथवा उनको आकृति स्थापना समापत्ति है।
(३) द्रव्य समापत्ति - भाव समापत्ति की पूर्व अथवा उत्तर अवस्था, अथवा समापत्ति के स्वरूप का अनुपयुक्त (उपयोग रहित) ज्ञाता द्रव्य समापत्ति है।
(४) भाव समापत्ति - आगम और नोआगम दो भेद हैं। (१) आगम से भाव समापत्ति-समापत्ति के स्वरूा को स्पष्टतः
१ यहाँ आगम का अर्थ श्रुतज्ञान है, उसके उपयोगयुक्त सभापत्ति ।
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