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________________ 50 सर्वज्ञ कथित: परम सामायिक धर्म गुरु-वन्दन के महान लाभ सद्गुरु भगवानों को वन्दन, नमन करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं, अनेक प्रकार के गुण प्राप्त होते हैं । आदर पूर्वक गुरु-वन्दन करने से विनय धर्म की आराधना होती है, अभिमान पिघल जाता है, गुरु-जनों की पूजा - सेवा होती है, तीर्थंकर भगवान की आज्ञा का पालन होता है और श्रुत-धर्म की आराधना होती है । "भन्ते" शब्द की व्याख्या करते हुए शास्त्रकार महर्षि ने गुरु तत्व का जो विशिष्ट स्वरूप एवं महत्व प्रतिपादित किया है, उसके गूढ़ रहस्य तो कोई बहुत गीतार्थ गुरु भगवान् ही समझा सकते हैं । यहाँ तो उसके स्वरूप सार मात्र पर विचार किया जायेगा । गुरु तत्व का स्वरूप - " भन्ते" शब्द के भदन्त आदि पर्यायवाची शब्दों के द्वारा गुरु-तत्व का स्वरूप स्पष्ट किया गया है जो इस प्रकार है - " भद्" धातु का अर्थ "कल्याण" और "सुख" होता है, जिससे बने “भदन्त” शब्द का अर्थ "कल्याणकारी" एवं "सुखी" होता है । गुरु भगवान स्वयं कल्याणस्वरूप एवं सुखस्वरूप हैं और अन्य व्यक्तियों को भी कल्याण एवं सुख प्राप्त कराने वाले हैं। कल्य का अर्थ "आरोग्य" भी होता है । गुरु भगवान् मोक्ष अथवा उसके कारणभूत ज्ञान आदि भाव - आरोग्य को प्राप्त कराते हैं, स्वयं मोक्ष अथवा उसके कारणभूत ज्ञान आदि के स्वरूप को जानते हैं और भव्य आत्माओं को बताते हैं । अथवा तो गुरुदेव द्वारा दिये गये अभयदान आदि के उपदेश से अहिंसा आदि की शुभ प्रवृत्ति से जीव सुख का अनुभव करते हैं, अतः सुखदाता "गुरु" भी "सुख" कहलाते हैं । भवान्त-भव का ---चार गति स्वरूप दुःखमय संसार का अन्त करने के उपदेशक गुरुदेव भी "भवान्त" कहलाते हैं । भयान्त - इहलोक आदि सात भयों के नाशक होने से "गुरु" "भयान्त" कहलाते हैं । महान सात भय निम्नलिखित हैं ( १ ) इहलोक भय - मनुष्य को मनुष्य का भय । (२) परलोक भय - मनुष्य को तिर्यंच से भय । (३) आदान भय - धन-धान्य आदि के नाश का भय ( चोरी होने का भय ) (४) अकस्मात् भय - बाह्य निमित्त के बिना उत्पन्न होने वाले आकस्मिक भूकम्प, बाढ़ आदि का भय । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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