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Arrrrrrrrrrriपरीषह-जयीxxxxxxxxx में ससंघ प्रवेश करते हुए मुनि विद्युच्चर को रोका ।
“ देवी आप कौन है ? और मुझे क्यों रोक रहीं हैं ? मैं तो अहिंसा का सन्देशवाहक हूँ । जिनेन्द्र भगवान का अनुयायी हूँ । मुझसे आपको क्या कष्ट होगा ।'' मुनि महाराज ने वहाँ खड़ी ,रोकने वाली स्त्री से पूछा ।
“मैं चामुण्डा देवी हूँ , इस नगर में मेरी पूजा विधि हो रही है । इसलिए जबतक वह पूर्ण न हो जाए तबतक आप यहीं रुके ।''देवी ने परिचय देते हुए कहा ।
"देवी हम वीतराग प्रभु के अनुगामी हैं । हमारे प्रभु निर्ग्रन्थ ,कषायरहित, समदृष्टा हैं । वे या उनके अनुयायी कभी किसी का अनिष्ट नहीं करते । फिर आप क्यों डर रही हैं ।'' कहते-कहते महाराज ने अपने संघ सहित नगर में प्रवेश किया । और नगर के एकान्त स्थान पर बने उद्यान में रुके , और पवित्र दिनचर्या से कार्य करते हुए सामायिक करने लगे। __महाराज विधुच्चर के संघ सहित पधारने के समाचार सुनकर सभी लोग उनके दर्शनार्थ आने लगे । लगभग पूरा नगर उद्यान की ओर ही उमड़ पड़ा । देवी के यज्ञादि हिंसात्मक यज्ञ में नहीवत् लोग रह गये । सारा मजा किरकिरा हो गया । इससे देवी के क्रोध की अग्नि भड़क उठी । उसने हिंसात्मक ढ़ग से बदला लेने का दुष्ट विचार किया । रौद्र ध्यान के कारण वह स्वयं क्रोध का अवतार लगने लगी । उसका भयावना ,विकृत रूप देककर लोग डर गये । मुनि पर उपसर्ग करके बदला लेने की भावना से उसने विशाल काय जहरीले डास,मच्छरों की सृष्टि की और मुनि महाराज पर छोड़ दिए। ये जहरीले कीड़े तप में आरूढ़ महाराज विद्युच्चर की देह को डंसने लगे । उनके पैने और विषैले डंक देह का रक्त पीने लगे | उस राक्षसीने इस पवित्र भूमि पर अनेक मांस के ताजे दुर्गन्ध युक्त टुकड़े बिखरा कर वातावरण दूषित किया । अपनी मैली विद्या से चारों ओर दुर्गन्ध फैला दी जिससे श्वास लेना भी दूभर होने लगा । तपस्या रत महाराज का दम घुटने लगा।
महाराज विद्युच्चर ने अपने योग-बल से इस उपसर्ग की जानकारी प्राप्त
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