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________________ XXXपरीपह-जयीxxxxxxxx जुर्म क्यों नहीं कबूल किया । __ “तुमने अपना अपराध स्वीकार किया ,इससे हम तुम्हें अपने वचनानुसार क्षमा करते हैं । परन्तु यह बताओं कि तुम कौन हो ? और इतनी पीड़ा क्यों सहन की?" राजा ने जिज्ञासा से कोढ़ी से पूछा । “महाराज मेरा नाम विद्युच्चर है । वेनातट नगर से राजा जितशत्रु और रानी जयावती मेरे माता-पिता हैं । आपके यमदण्ड कोतवाल मेरे मित्र हैं । " “क्या ? यमदण्ड तुम्हारे मित्र कैसे हुए ?''महाराज ने आश्चर्य से पूछा। " “महाराज आपके कोतवाल यमदण्ड मेरे पिता के कोतवाल यमपाश के सुपुत्र हैं । इनकी माता का नाम यमुना है । हम दोनों ने एक ही गुरू के पास शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की है । इन्होंने रक्षा सम्बन्धी शास्त्रों का अध्यय किया और मैंने मनोविनोद के लिए चौर्य शास्त्र का अध्ययन किया । हम दोनों को अपनी अपनी विद्या पर बड़ा गर्व था । " कहते-कहते विद्युच्चर ने मुस्कराते हुए यमदण्ड की ओर देखा । __“महाराज यह बात सच है ,लेकिन मेरा मित्र विद्युच्चर स्वरूपवान राजकुमार है । यह कोढ़ी झूठ बोल रहा है । मुझे बदनाम करने की दृष्टि से यह मेरे मित्र के नाम का उपयोग कर रहा है। " ___ “विद्युच्चर यदि तुम सचमुच राजकुमार विधुच्चर हो तो तुम ऐसे कुरूप और रोगी कैसे हो गए ?" राजा ने शंका से कोढ़ी से पूछा । “महाराज चौर्य विद्या में वेषपरिवर्तन की कला भी सिखाई जाती है । मैंने उसी कला का उपयोग किया । मैं दिन में कोढ़ी का वेश धारण कर लेता था और उस सुनसान मंदिर में पड़ा रहता था । रात्रि में अपने मूलरूप में राजकुमार की तरह आनन्द करता था । यह सारा वेषपरिवर्तन मेरे लिए तब तक आवश्यक था जबतक मैं आपका कीमती हार न चुराता । " "फिर हार चुराने के बाद भी तुम कोढ़ी के वेष में मंदिर में क्यों पड़े रहते थे ?'' महाराज ने रहस्य जानने के लिए पूछा । “महाराज मेरा उद्देश्य हार चुराना नहीं था । मैं तो चाहता था कि शंका से ही सही कोतवाल मुझे पकड़े और यह हार जाये । " कहते कहते विधुच्चर ने राजा के सामने ही वेषपरिवर्तन किया और खूबसूरत नौजवान के रूप में दिखाई देने लगा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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